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धराली में बह गया सब कुछ, बस आंकड़े जिंदा हैं?

लापता लोगों की संख्या को लेकर सवाल गंभीर

जहां आज मलबे के ढेर हैं वहां कितने होटल, कितने होम स्टे थे, ये सच भी मलबे में दफन

गीता मिश्रा, देहरादून।

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली में आई भीषण जल प्रलय के बाद सरकारी आंकड़ों और जमीनी हकीकत में बड़ा अंतर दिखाई दे रहा है। सरकार ने आधिकारिक रूप से लापता लोगों की संख्या 42 बताई है, जबकि 5 शव बरामद किए जा चुके हैं। इसके अलावा 98 लोगों को 5-5 लाख रुपये की तात्कालिक सहायता देने की घोषणा भी की गई है। यह गणित समझ से परे है, क्योंकि सहायता पाने वालों की संख्या और लापता या मृत घोषित लोगों का आंकड़ा मेल नहीं खा रहा।

आपदा के समय धराली में मेला लगा हुआ था और देवता की पूजा चल रही थी। उसी समय 5 अगस्त की दोपहर में  तेज़ रफ्तार मलबे का सैलाब, सामने से आती गर्जना और पलक झपकते ही पक्की इमारतें ऐसे ढहतीं जैसे किसी ने रेत का महल तोड़ दिया हो। धराली आपदा का वीडियो इस त्रासदी की भयावह सच्चाई उजागर करता है। उफान मारते पानी ने एक-एक कर कई होमस्टे और होटलों को ऐसे बहा दिया मानो वे कागज़ के खिलौने हों। सबसे बड़ा सवाल यह है कि आज जहां सिर्फ मलबा बचा है, वहां आपदा से पहले कितने होमस्टे, होटल या अन्य इमारतें , घर मौजूद थे, इसकी ठोस जानकारी कहीं न कहीं स्थानीय प्रशासन के रिकॉर्ड में जरूर होगी, लेकिन सरकार इस पर कोई रोशनी नहीं डाल रही। स्थानीय लोगों का कहना है कि इनमें से कई इमारतें उस वक्त खाली नहीं थीं—किसी में मालिक मौजूद थे, तो कहीं पर्यटक या कर्मचारी ठहरे हुए थे। फिर भी, इन ढांचों और उनमें मौजूद लोगों की सटीक जानकारी प्रशासन के पास नहीं है या वह साझा नहीं की जा रही। आंकड़ों पर गौर करें तो ऐसा प्रतीत होता है जैसे दो इमारतों में मात्र एक व्यक्ति ही मौजूद था, जबकि आपदा के दौरान सामने आए वीडियो में एक होटल के बाहर 4-5 लोग भागते हुए स्पष्ट दिखाई दे रहे थे, लेकिन सरकारी रिपोर्ट में इन सभी का जिक्र नहीं है।

धराली और आसपास के कई निर्माणाधीन स्थलों पर बड़ी संख्या में नेपाली मजदूर भी काम कर रहे थे। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि इनमें से कुछ मजदूर आपदा के बाद नेपाल लौट गए, लेकिन बाकी का अब तक कोई पता नहीं चला।

स्थानीय निवासियों का कहना है कि जल प्रलय ने किसी को संभलने का मौका ही नहीं दिया। पानी का तेज बहाव और मलबे ने लोगों को वहीं दबा दिया जहां वे खड़े थे। कई मकान, होटल, दुकानों और निर्माण साइटों पर काम करने वाले लोग उसी मलबे में समा गए। बावजूद इसके, सरकारी रिपोर्टों में लापता लोगों की संख्या अपेक्षाकृत कम दिखाई जा रही है, जिससे आंकड़ों की सटीकता पर सवाल उठ रहे हैं।

सरकारी मशीनरी का दावा है कि राहत और बचाव कार्य लगातार जारी है और प्रभावित क्षेत्रों की गहन छानबीन की जा रही है। लेकिन धराली के लोग मानते हैं कि सरकार ने वास्तविक स्थिति का सही तरीके से आकलन नहीं किया। कई परिजनों को अब तक अपने लापता संबंधियों के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं मिली है, जिससे उनके बीच नाराज़गी और अविश्वास बढ़ता जा रहा है।

स्थानीय समाजसेवियों का कहना है कि आपदा प्रबंधन विभाग को चाहिए कि वह जमीन पर मौजूद टीमों की रिपोर्ट और प्रत्यक्षदर्शियों के बयान को गंभीरता से ले, ताकि असल आंकड़े सामने आ सकें। केवल कागजों में राहत और मुआवजे का वितरण दिखाने से पीड़ित परिवारों का दर्द कम नहीं होगा।

धराली त्रासदी सिर्फ एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि सरकारी आंकड़ों और सच्चाई के बीच के अंतर का भी उदाहरण बन गई है। सवाल यह है कि क्या सरकार इन संख्याओं के पीछे छिपी सच्चाई उजागर करेगी, या फिर यह भी अन्य आपदाओं की तरह धीरे-धीरे लोगों की यादों में धुंधली हो जाएगी।

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