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“विश्व रेबीज दिवस: बढ़ते खतरे के बीच जागरूकता और टीकाकरण ही बचाव”

हर साल दुनियाभर में 59 हजार लोगों की मौत रेबीज से

हर साल 28 सितंबर को ही क्यों मनाते हैं ‘वर्ल्ड रेबीज डे’ 

आज 28 सितंबर है — विश्व रेबीज दिवस (World Rabies Day) पर क्या आपने कभी सोचा है कि हर साल 28 सितंबर को वर्ल्ड रेबीज डे क्यों मनाया जाता है। दिन सिर्फ एक तारीख नहीं बल्कि एक खास मकसद को समर्पित है- रेबीज जैसी जानलेवा बीमारी को दुनिया से पूरी तरह खत्म करना। यह दिन दुनिया भर में उन हजारों जिंदगियों की याद दिलाता है जो हर साल इस खामोश बीमारी की वजह से खत्म हो जाती हैं। रेबीज का नाम सुनते ही सबसे पहले कुत्तों के काटने की घटनाएं सामने आती हैं। दरअसल, यह बीमारी संक्रमित जानवर की लार के जरिए फैलती है और अगर समय पर इलाज न मिले तो मौत तय है।

क्यों 28 सितंबर को हर साल मनाया जाता है World Rabies Day?

वर्ल्ड रेबीज डे मनाने के लिए 28 सितंबर की तारीख को इसलिए चुना गया क्योंकि यह महान वैज्ञानिक लुई पाश्चर की पुण्यतिथि है। लुई पाश्चर ने ही रेबीज की पहली वैक्सीन विकसित की थी, जिसने लाखों लोगों की जान बचाई और इस बीमारी के खिलाफ मानव जाति को एक बड़ा हथियार दिया। यह दिन उनके अमूल्य योगदान को याद करने और रेबीज के बारे में जागरूकता फैलाने का एक तरीका है।

वर्ल्ड रेबीज डे’ मनाने की शुरुआत साल 2007 में की गई थी। इसकी शुरुआत लायन हार्ट्स फाउंडेशन (Lion Hearts Foundation) और सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) की साझेदारी में हुई थी। इस पहल का मुख्य उद्देश्य रेबीज जैसी घातक, लेकिन रोकी जा सकने वाली बीमारी के बारे में वैश्विक जागरूकता फैलाना और सभी को एक साथ आकर काम करने के लिए प्रेरित करना था।

दुनिया और भारत में रेबीज की स्थिति

  • WHO के अनुसार, दुनियाभर में हर साल करीब 59 हजार लोगों की मौत रेबीज से होती है।
  • सबसे ज्यादा मामले एशिया और अफ्रीका से सामने आते हैं।
  • भारत की स्थिति चिंताजनक है: यहां 95% से ज्यादा केस कुत्तों के काटने से ही होते हैं।

किन-किन जानवरों से फैल सकता है रेबीज?

अक्सर लोगों को लगता है कि यह केवल कुत्तों से होता है, जबकि सच यह है कि कई जानवर इसके वाहक हो सकते हैं:

🐕 कुत्ते – रेबीज के सबसे बड़े वाहक, खासकर आवारा।

🐈 बिल्लियां – पालतू और आवारा दोनों।

🦇 चमगादड़ – अमेरिका में रेबीज का मुख्य कारण।

🐒 बंदर – काटने या खरोंचने से।

🦊 लोमड़ी, रैकून और सियार – जंगली जानवरों से भी खतरा।

🐄 गाय, भैंस व अन्य पशु – संक्रमित हों तो इनके काटने से भी रेबीज फैल सकता है।

सुप्रीम कोर्ट और यूपी सरकार की पहल

पिछले महीने दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों को लेकर बड़ा फैसला दिया। कोर्ट ने कहा कि बढ़ते मामलों को देखते हुए कुत्तों को शेल्टर होम में रखा जाए और उनका नियमित टीकाकरण कराया जाए।

इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश सरकार ने भी कदम उठाए। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने निर्देश दिया है कि पूरे प्रदेश में डॉग वैक्सीनेशन अभियान तेज़ किया जाए, शेल्टर होम बनाए जाएं और जनता को रेबीज के खतरों से अवगत कराया जाए।

कैसे होती है रेबीज की बीमारी?

रेबीज वायरस संक्रमित जानवर की लार से फैलता है। अगर किसी के शरीर पर पहले से खरोंच या चोट हो और वहां वायरस पहुंच जाए तो संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है।

लक्षण कब और कैसे दिखते हैं?

रेबीज का सबसे बड़ा खतरा यह है कि इसके लक्षण तुरंत सामने नहीं आते।

  • शुरुआत में: घाव वाली जगह पर जलन, बुखार और बेचैनी।
  • वायरस दिमाग तक पहुंचने पर: पानी का डर (हाइड्रोफोबिया), हवा से डर (एयरोफोबिया), अत्यधिक लार आना।
  • पैरालिटिक रेबीज: शरीर के प्रभावित हिस्से से लकवा शुरू होना और 72 घंटे में कोमा की स्थिति।

कितने दिन में होती है मौत?

  • अगर रेबीज का संक्रमण गहराई तक पहुंच जाए तो मरीज को बचाना लगभग नामुमकिन है।
  • कई मामलों में लक्षण दिखने के 10 दिनों के भीतर मौत हो जाती है।
  • लेकिन कभी-कभी यह अवधि कुछ हफ्तों, महीनों या एक साल से भी ज्यादा हो सकती है।

यह इस बात पर निर्भर करता है कि काटने की जगह कहाँ है, घाव कितना गहरा है और शरीर में वायरस की मात्रा कितनी है।

बचाव ही सबसे बड़ा इलाज

विशेषज्ञ कहते हैं कि रेबीज का कोई स्थायी इलाज नहीं है। लेकिन अच्छी बात यह है कि अगर समय रहते वैक्सीन लग जाए तो यह 100% रोकी जा सकती है।

  • पालतू कुत्तों और बिल्लियों का नियमित टीकाकरण कराएं।
  • आवारा कुत्तों को उकसाने या परेशान करने से बचें।
  • कुत्ता काटने पर घाव को तुरंत साबुन और पानी से धोएं और बिना देर किए अस्पताल जाकर एंटी-रेबीज इंजेक्शन लगवाएं।

 

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