
गोरखपुर। दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय (डीडीयू) में गुरुवार को हुई घटना ने शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल दी। गणित में 78–85% अंक लाने वाला मेधावी छात्र जब इंटरनल में सिर्फ 25 में से 1 अंक पाता है, तो पिता न्याय की आस में बेटे संग विश्वविद्यालय पहुँचते हैं। लेकिन विभागाध्यक्ष से सुनवाई की बजाय जब उन्हें कहा गया कि “अब कुछ नहीं हो सकता”, तो सदमे की वही घड़ी उनकी ज़िंदगी की आखिरी साबित हुई।
इंटरनल अंकों की संरचना और सवाल
डीडीयू में इंटरनल मूल्यांकन की कुल 25 अंकों की व्यवस्था है—
- 5 अंक उपस्थिति के लिए
- 10 अंक असाइनमेंट/होमवर्क के लिए
- 10 अंक आंतरिक टेस्ट के लिए
छात्र की नियमित उपस्थिति थी, लिहाज़ा केवल उपस्थिति के आधार पर ही कम से कम 5 अंक मिलना तय था। इसके बावजूद उसे पूरे इंटरनल में केवल 1 अंक दिया गया। यह गड़बड़ी परिजनों और छात्रों के बीच बड़ा सवाल बन गई।
लिखित परीक्षा में ठीक प्रदर्शन
छात्र को क्लासिकल मैकेनिक्स की लिखित परीक्षा में 75 में से 34 अंक मिले थे। पिछले सभी सेमेस्टर में उसका प्रदर्शन 78 से 85 प्रतिशत तक रहा है। ऐसे छात्र को इंटरनल में केवल 1 अंक देना मनमानी और पारदर्शिता पर सवाल खड़े करता है।
शिकायत से सदमा तक
- 17 जुलाई को पिता-पुत्र ने विभागाध्यक्ष से शिकायत की।
- 27 अगस्त को कुलपति से मुलाकात की।
- 1 सितंबर को कुलपति कार्यालय ने बुलाकर सुनवाई की।
लेकिन जब गुरुवार को विभागाध्यक्ष ने साफ कहा कि अब अंकों में कोई बदलाव संभव नहीं है, तो पिता वहीं सदमे में गिर पड़े और अस्पताल ले जाते समय उनकी मौत हो गई। परिवार का कहना है कि यह स्पष्ट अन्याय है। गणित जैसे विषय में, जहाँ उपस्थिति और असाइनमेंट पर ही अंक तय हैं, वहाँ केवल 1 अंक मिलना मनमानी है। विश्वविद्यालय परिसर में अफरातफरी मच गई और अब परिजन न्याय की मांग कर रहे हैं।
प्रशासन की सफाई, कराएंगे जांच
विश्वविद्यालय प्रशासन ने घटना की पुष्टि की है और कहा है कि मामले की जांच कराई जाएगी। लेकिन इस दर्दनाक हादसे ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि नियम किताबों में हैं, ज़मीन पर नहीं।
मामले से उठे सवाल
- उपस्थिति के तय अंक क्यों नहीं दिए गए?
- क्या मूल्यांकन शिक्षक की मनमर्जी पर आधारित है?
- छात्रों और अभिभावकों की शिकायतों का निस्तारण कौन करेगा?
जरूरी सुधार
- इंटरनल अंकों की ऑनलाइन और पारदर्शी एंट्री।
- समीक्षा समिति (Grievance Cell) की सक्रियता।
- फैकल्टी को जवाबदेह बनाना।
- अकादमिक ऑडिट की अनिवार्यता