
समाज के बदलते चेहरे की कहानी है यह
कल्पना कीजिए… कोई भिखारी सड़क, मंदिर या रेलवे स्टेशन पर नहीं बैठा है। उसके हाथ में कटोरा भी नहीं है। इसके बजाय उसकी स्क्रीन पर चमकता है एक QR कोड – और लोग उसे स्कैन करके पैसे भेजते जाते हैं। सुनने में अजीब लगे, लेकिन यही हकीकत है। यह एक ऐसा शख्स है जिसने भीख मांगने को डिजिटल युग में ढाल दिया है और आज लाखों लोग उसकी ज़िंदगी के गवाह बने हुए हैं।
अनोखी कहानी
इस ऑनलाइन भिखारी का नाम है गोविंद सूर्या। उसके चैनल पर 5 लाख से ज्यादा लोग जुड़े हैं और अब तक 26 करोड़ से अधिक व्यूज़ आ चुके हैं। गोविंद अब तक करीब 3.8 हज़ार वीडियो डाल चुका है। वह हर दिन लगभग 3-4 घंटे तक लाइव आता है और स्क्रीन पर 2-3 QR कोड लगाकर लोगों से पैसे मांगता है।
उसका बायो भी उसके संघर्ष की झलक देता है – “एक दिन मैं अपना घर जरूर बनाऊंगा, फिर कोई नहीं कहेगा कि निकल जा यहां से।” खास बात यह है कि वह किसी और को फॉलो नहीं करता, बस अपने ही दूसरे चैनल को फॉलो करता है।
कितना पैसा आता है डिजिटल कटोरे में?
रिपोर्ट्स के मुताबिक गोविंद सूर्या के लाइव सेशन्स में कभी-कभी 10,000 से ज्यादा दर्शक जुड़ जाते हैं। लोग उसके QR कोड स्कैन करके 1 रुपये से लेकर 100 रुपये तक की रकम भेजते हैं। कई बार छोटे-छोटे दानों की यह संख्या इतनी बढ़ जाती है कि उसकी एक दिन की कमाई लगभग 10,000 रुपये तक पहुँच जाती है। यानी डिजिटल कटोरे में पैसे सिक्कों की तरह टपकते हैं, और जोड़ते-जोड़ते मोटी रकम बन जाती है। हालांकि उसने अब तक कुल कितनी आमदनी की है, इसका कोई पुख्ता खुलासा नहीं है।
बदलते जमाने का कटोरा
गोविंद सूर्या की यह कहानी सिर्फ उसकी निजी जद्दोजहद नहीं है, बल्कि एक बड़े सामाजिक बदलाव की तस्वीर भी है। अब भीख मांगने का पारंपरिक तरीका – सड़कों पर बैठा कोई शख्स, हाथ फैलाए सिक्कों की उम्मीद करता हुआ – धीरे-धीरे बदल रहा है। तकनीक ने यहां भी दस्तक दी है। अब UPI और QR कोड भिखारियों के नए औज़ार बन गए हैं।
सवाल और बहस
लेकिन यह बदलाव अपने साथ कई सवाल भी लाता है। क्या यह मजबूरी है या नया “बिजनेस मॉडल”? क्या ऐसे डिजिटल दान समाज में सहानुभूति बढ़ाते हैं या फिर यह सिर्फ वायरल कंटेंट का हिस्सा है? और सबसे अहम – क्या प्लेटफ़ॉर्म और कानून इस तरह की गतिविधियों के लिए तैयार हैं?
डिजिटल भीख का यह मॉडल जितना चौंकाता है, उतना सोचने पर भी मजबूर करता है। एक तरफ यह तकनीक की ताकत को दिखाता है, दूसरी तरफ यह याद दिलाता है कि गरीबी और संघर्ष किस रूप में भी सामने आ सकते हैं। कटोरे से लेकर QR कोड तक की यह यात्रा समाज के बदलते चेहरे की ऐसी कहानी है, जिसे नज़रअंदाज़ करना आसान नहीं।