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महालय / सर्वपितृ अमावस्या 2025: पितृ तर्पण और दीपदान से मिलेगा पूर्वजों का आशीर्वाद

तर्पण और दीपदान से पितृ दोष से मुक्ति और जीवन में सुख-समृद्धि

21 सितंबर रविवार को महालय अमावस्या, होगी पितरों की विदाई

श्राद्ध शब्द श्रद्धा से बना है, जिसका मतलब है पितरों के प्रति श्रद्धा भाव। हमारे भीतर प्रवाहित रक्त में हमारे पितरों के अंश हैं, जिसके कारण हम उनके ऋणी होते हैं और यही ऋण उतारने के लिए श्राद्ध कर्म किये जाते हैं। आप दूसरे तरीके से भी इस बात को समझ सकते हैं। पिता के जिस शुक्राणु के साथ जीव माता के गर्भ में जाता है, उसमें 84 अंश होते हैं, जिनमें से 28 अंश तो शुक्रधारी पुरुष के खुद के भोजनादि से उपार्जित होते हैं और 56 अंश पूर्व पुरुषों के रहते हैं। उनमें से भी 21 उसके पिता के, 15 अंश पितामह के, 10 अंश प्रपितामाह के, 6 अंश चतुर्थ पुरुष के, 3 पंचम पुरुष के और एक षष्ठ पुरुष के होते हैं। इस तरह सात पीढ़ियों तक वंश के सभी पूर्वज़ों के रक्त की एकता रहती है। लेकिन श्राद्ध या पिंडदान मुख्यतः तीन पीढ़ियों तक के पितरों को दिया जाता है।

पितृ पक्ष इस साल 7 सितंबर, रविवार से शुरू हुआ था और 21 सितंबर को सर्व पितृ अमावस्या के साथ ही पितरों की विदाई होगी। 16 दिन तक चलने वाले पितृ पक्ष के दौरान लोग अपने पूर्वजों का स्मरण कर श्राद्ध, तर्पण और दान-पुण्य करते हैं। ऐसा माना जाता है कि पितरों की आत्माएं इन दिनों अपने परिजनों के पास आती हैं और विधिपूर्वक तर्पण करने पर तृप्त होकर आशीर्वाद देती हैं। सर्व पितृ अमावस्या को उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु की तिथि आपको मालूम न हो। यदि इस दिन श्राद्ध किया जाये तो सभी भूले – बिसरे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। आपके जीवन में सुख- समृद्धि आती है। इस दिन श्राद्ध करने से पितृ दोष समाप्त हो जाता है। इस तिथि को सर्व पितृ मोक्ष अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। इन 16 दिनों की साधना का अंतिम दिन ही सर्वपितृ अमावस्या या महालय अमावस्या कहलाता है। इस बार यह दिन 21 सितंबर, रविवार को पड़ रहा है। इसे सर्वपितृ कहा जाता है क्योंकि इस दिन उन पितरों का भी श्राद्ध किया जाता है जिनकी मृत्यु तिथि ज्ञात न हो। विधिपूर्वक श्राद्ध करने से पितृ प्रसन्न होकर वंशजों को आयु, स्वास्थ्य, धन और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।

महालय शब्द का अर्थ है – महान आलिंगन/अंतिम चरण, क्योंकि यह पितृ पक्ष का महान और अंतिम सोपान है। यह दिन विशेष इसलिए भी है कि इस दिन किए गए तर्पण और दान से भूले-बिसरे पितरों की आत्मा को भी तृप्ति मिलती है।

तिथि और शुभ मुहूर्त

अमावस्या तिथि प्रारंभ: 21 सितम्बर, रात 12:16 बजे

अमावस्या तिथि समाप्त: 22 सितम्बर, रात 1:23 बजे

तर्पण/श्राद्ध के शुभ मुहूर्त (21 सितंबर)

कुतुप मुहूर्त: 11:50 AM – 12:38 PM

रोहिणा मुहूर्त: 12:38 PM – 01:27 PM

अपराह्न काल: 01:27 PM – 03:53 PM

घर में तर्पण की पूरी विधि

यदि आप घर में बैठकर तर्पण करना चाहते हैं, तो इसे ध्यान से अपनाएं:

स्थान और तैयारी

  • घर की दक्षिण दिशा में एक साफ स्थान चुनें।
  • एक पात्र में पानी लें, उसमें यज्ञोपवीत और पत्ते रखें।
  • पास में तिल, चावल, फूल और दीपक रखें।

स्वयं की शुद्धि

  • स्नान करें और शुद्ध वस्त्र पहनें।
  • अपने मन को शांत करें और पूर्वजों का स्मरण करें।
  • जब तक श्राद्ध ना हो जाए कुछ खाएं-पीएं ना।

तर्पण का क्रम

  • इस समय दक्षिण दिशा में मुंह रखकर बाएं पैर को मोड़कर, घुटने को जमीन पर टीकाकर बैठें।
  • अब हाथ में कुशा घास रख कर बर्तन वाले जल को हाथों में भरें। फिर सीधे यानि राइट हैंड के अंगूठे से पानी को उसी बर्तन में गिरा दें।
  • .लगातार 11 बार इस प्रक्रिया को दोहराते हुए पूर्वजों का ध्यान करें
  • पानी में तिल और चावल डालकर “ॐ पितृदेवाय तर्पणम्” का उच्चारण करें।
  • प्रत्येक पितृ के लिए तीन बार तर्पण दें।
  • यदि संभव हो, तो ब्राह्मणों को भोजन और तिल-चावल अर्पित करें।

पंचबली श्राद्ध

  • कौए, कुत्ता, गाय और चींटी के लिए भी भोजन निकालें।
  • इस विधि से भूले-बिसरे पितरों की आत्मा को तृप्ति मिलती है।

दीपदान और समापन

  • शाम के समय घर की दक्षिण दिशा में चारमुखी दीपक जलाएं।
  • पितरों के प्रति आभार व्यक्त करें और उनसे आशीर्वाद की प्रार्थना करें।

ऐसे मिलेगा पितरों का आशीर्वाद

ज्योतिषशास्त्र अनुसार, सर्व पितृ अमावस्या पितृ पक्ष का आखिरी दिन होता है। मान्यता है कि पितरों का श्राद्ध करने के बाद इस आखिर दिन में उनकी विधि-विधान से विदाई करनी चाहिए। इससे पितरों का आशीर्वाद मिलता है। ऐसे में घर में सुख-समृद्धि, शांति व खुशियों का वास होता है। इसके साथ पूर्वज भी खुशी-खुशी अपने लोक को चले जाते हैं।

क्या करें और क्या न करें

  • स्नान के बाद तर्पण और श्राद्ध अनुष्ठान करें।
  • गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन व दान करें।
  • सर्वपितृ अमावस्या के दिन अन्न का दान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे तृप्त होते हैं. इस दिन गेंहू और चावल का दान अवश्य करना चाहिए.
  • पितृपक्ष में बिना काले तिल के श्राद्ध कर्म पूरा नहीं होता. इसलिए सर्वपितृ अमावस्या के दिन काले तिल का दान जरूर करना चाहिए.
  • मन को शुद्ध रखें और पूर्वजों का स्मरण करें।
  • मांस, मदिरा, लहसुन-प्याज का सेवन न करें।
  • किसी बुजुर्ग का अपमान, झूठ बोलना और बुरे विचार मन में लाना वर्जित है।
  • एक ही नगर में रहने वाली अपनी बहन, जमाई और भांजे को भी श्राद्ध के दौरान भोजन जरूर कराएं। ऐसा न करने वाले व्यक्ति के घर में पितरों के साथ- साथ देवता भी भोजन ग्रहण नहीं करते।
  • श्मशान घाट या सुनसान स्थानों पर जाने से बचें।
  • ब्रह्मचर्य का पालन करें।

सूर्य ग्रहण का असर

इस वर्ष महालय अमावस्या के दिन सूर्य ग्रहण भी लगेगा। ज्योतिष के अनुसार, इसका तर्पण या श्राद्ध कर्म पर कोई दुष्प्रभाव नहीं है। श्रद्धालु निर्धारित समय पर निसंकोच तर्पण और दीपदान कर सकते हैं।

सर्वपितृ अमावस्या न सिर्फ पितरों की आत्मा की शांति के लिए, बल्कि परिवार के सुख-समृद्धि के लिए भी महत्वपूर्ण दिन है। विधिपूर्वक तर्पण, श्राद्ध और दीपदान करने से पितृ दोष दूर होते हैं और जीवन में शुभता आती है।

 

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