
भगवान विश्वकर्मा की जयंती पर विशेष
देहरादून। हिन्दू धर्म में भगवान विश्वकर्मा को सृष्टि का प्रथम शिल्पकार, निर्माण कला के जनक और दिव्य अभियंता माना गया है। प्राचीन ग्रंथों और पुराणों में उनका उल्लेख देवताओं के वास्तुकार और विश्व के प्रथम इंजीनियर के रूप में मिलता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विश्वकर्मा का जन्म भाद्रपद मास की द्वादशी तिथि को हुआ था। इसी कारण इस दिन को “विश्वकर्मा जयंती” के रूप में पूरे देश में मनाया जाता है। माना जाता है कि वे स्वयं ब्रह्मा जी के मानस पुत्र हैं। उनके पिता ब्रह्मा जी थे और माता योगसिद्धा कही जाती हैं।
भगवान विश्वकर्मा की कार्यशैली अद्वितीय और अद्भुत थी। उन्हें वास्तुशास्त्र, स्थापत्य कला, शिल्प और अभियांत्रिकी का आचार्य माना जाता है। पुराणों के अनुसार, उन्हीं की दिव्य योजना और कौशल से इन्द्रपुरी, द्वारका नगरी, हस्तिनापुर, स्वर्गलोक, लंका नगरी और महाभारत कालीन इन्द्रप्रस्थ जैसी भव्य नगरीय संरचनाएं निर्मित हुईं।
विश्वकर्मा जी ने ही देवताओं के दिव्य शस्त्र और रथों का निर्माण किया। त्रिदेव के अस्त्र-शस्त्र, भगवान शिव का त्रिशूल, भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र, इन्द्र का वज्र, कार्तिकेय का भाला और कुबेर का पुष्पक विमान भी उनकी अद्वितीय कारीगरी के उदाहरण हैं। कहा जाता है कि उनके बिना देवताओं की कोई भी लीला पूर्ण नहीं हो सकती थी।
विश्वकर्मा जी को दक्षता, मेहनत और सृजनशीलता का प्रतीक माना जाता है। आज भी उनकी जयंती पर देशभर के कारखानों, उद्योगों, निर्माण स्थलों और मशीनरी पर काम करने वाले लोग विशेष पूजा-अर्चना कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। परंपरा है कि इस दिन मशीनों और उपकरणों को साफ कर उनकी पूजा की जाती है, ताकि कार्य में प्रगति और सफलता मिल सके।
भगवान विश्वकर्मा की विरासत आज भी जीवित है। उन्हें “देव शिल्पी” और “विश्व के प्रथम अभियंता” की उपाधि प्राप्त है। आधुनिक युग में भी अभियंता, कारीगर और श्रमिक वर्ग उन्हें प्रेरणा स्रोत मानकर अपने कार्यों को सफल बनाने की कामना करता है ।