हनोल में जागड़ा मेले में उमड़ा आस्था का सैलाब
महासू देवता को माना जाता है न्याय का देवता

हनोल (उत्तरकाशी), 27 अगस्त : “जागड़ा” यानी देवता का जागरण, जब चार महासू देवता भक्तों की पीड़ा सुनते हैं और उन्हें न्याय का भरोसा देते हैं। बुधवार रात हनोल धाम में जब साल में एक बार निकलने वाली महासू देवता की डोली भक्तों के बीच आई, तो पूरा क्षेत्र जयकारों से गूंज उठा। हजारों श्रद्धालुओं ने रातभर देव आराधना कर अपने सुख-समृद्धि और न्याय की कामना की।
चार महासू देवता के प्रमुख धाम हनोल मंदिर में आयोजित राजकीय जागड़ा मेला बुधवार रात बड़ी श्रद्धा और धूमधाम के साथ मनाया गया। मेले का मुख्य आकर्षण रहा महासू देवता की डोली का मंदिर से बाहर आना, जिसे स्थानीय मान्यता के अनुसार साल में केवल एक बार जागड़ा के अवसर पर निकाला जाता है। डोली के बाहर निकलते ही पूरा हनोल क्षेत्र भक्तिमय जयकारों से गूँज उठा और श्रद्धालु भावविभोर हो गए।
डोली का धार्मिक महत्व और समय-सीमा
स्थानीय परंपरा के मुताबिक डोली केवल जागड़ा-महोत्सव में ही बाहर निकाली जाती है और इसे देवता का जन-दर्शन माना जाता है। डोली के बाहर निकलने को देवता का जागरण और जनपीड़ा को सुनने का प्रतीक माना जाता है — इसी कारण दूर-दराज़ से आए लोग भी इसे देखने के लिए रात गुजारना पसंद करते हैं।
भीड़, दूर-दराज़ से पहुंच और वाहनों में ओवरलोडिंग
प्रशासन के अनुमानों के अनुसार इस बार लगभग 25 हज़ार से अधिक श्रद्धालु हनोल पहुंचे। इनमें जौनसार-बावर, गढ़वाल, उत्तरकाशी, देहरादून के अलावा हिमाचल और उत्तर प्रदेश के भी लोग शामिल थे। सीमित परिवहन सुविधा और तीव्र आवक के कारण कई स्थानों पर यात्रियों ने छोटे-बड़े वाहनों में ओवरलोडिंग की — कई श्रद्धालु जैसे-तैसे साधनों का इंतज़ाम कर यहाँ पहुंचे। स्थानीय बस्तियों से पहुंचने वाले मार्गों पर यातायात जाम और अस्थायी पार्किंग की कमी भी देखी गई।
प्रशासनिक इंतज़ाम और सुरक्षा प्रबंध
जिला प्रशासन ने मेले के मद्देनज़र सुरक्षा और सुविधाओं के लिए विशेष इंतज़ाम किए। आयोजन स्थल पर पेयजल, अस्थायी विद्युत व्यवस्था, स्वास्थ्य शिविर, प्राथमिक चिकित्सा टीमें और एम्बुलेंस तैनात रखी गई थीं। पुलिस, होमगार्ड और स्थानीय स्वयंसेवक आयोजन स्थल तथा मार्गों पर तैनात रहे ताकि भीड़-प्रबन्धन और आपात स्थिति संभाली जा सके। इसके अलावा अस्थायी पार्किंग व ठहरने के प्रावधान बनाए गए, पर भीड़ के कारण कुछ स्थानों पर व्यवस्थाओं पर दबाव बना रहा।
प्रशासनिक सूत्रों ने कहा कि यात्री सुविधा और भीड़-नियंत्रण के लिए अगली बार और अधिक स्थायी व्यवस्था पर विचार किया जाएगा, साथ ही यात्रियों से भीड़-स्थान पर अनुशासन बनाए रखने और वाहन ओवरलोड न करने की अपील की गई।
सांस्कृतिक रंग और वाणिज्यिक गतिविधियाँ
रातभर देवता के हारूल पर पारंपरिक नृत्य-गीत चले। स्थानीय ढोल-दमाऊं, रणसिंघा और लोकगायक मेले में एक अलग उत्सव रचे। मेले के आसपास ग्रामीण हस्तशिल्प, पूजा-सामग्री और पर्वतीय व्यंजनों की दुकानें सजी रहीं, जिससे स्थानीय विक्रेताओं को भी बेहतर आय का अवसर मिला।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
हनोल का जागड़ा मेला सदियों पुरानी परंपरा बताई जाती है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार महासू देवता को इस अंचल में न्याय और कल्याण का प्रतीक माना गया है; कत्यूर वंश के समय से इस क्षेत्र में उनकी प्रतिष्ठा रही है। जागड़ा — अर्थात् देवता को जगाना — का यह उत्सव क्षेत्र की सामूहिक आस्था, न्याय-परंपरा और सांस्कृतिक पहचान का अहम हिस्सा है।