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नागपंचमी पर खुलता है नागचंद्रेश्वर मंदि

 साल में सिर्फ एक दिन मिलता है दर्शन का दुर्लभ अवसर

देहरादून। भारत की धार्मिक नगरी उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर की तीसरी मंजिल पर विराजमान नागचंद्रेश्वर मंदिर नागपंचमी के शुभ अवसर पर साल में एक दिन ही श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता है, जो इसे भारत के सबसे रहस्यमयी और विशेष मंदिरों की सूची में शामिल करता है। नागपंचमी पर दर्शन का यह अवसर हर शिवभक्त के लिए आध्यात्मिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

अद्वितीय मूर्ति, जो पूरे भारत में कहीं और नहीं

मंदिर में स्थापित प्रतिमा भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश जी की एक दुर्लभ मूर्ति है, जिसमें भगवान शिव शेषनाग की सर्प कुण्डली पर विराजमान हैं। यह प्रतिमा 11वीं शताब्दी की बताई जाती है और ऐतिहासिक रूप से इसे नेपाल से लाया गया माना जाता है। इस प्रकार की मूर्ति भारत में अन्यत्र कहीं नहीं पाई जाती, जो इसे और भी विशिष्ट बनाती है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: भोज से सिंधिया तक

इस मंदिर का निर्माण परमार वंश के महान शासक राजा भोज द्वारा 11वीं शताब्दी में कराया गया था। राजा भोज को मध्यकालीन भारत के विद्वान, स्थापत्य कला प्रेमी और धर्मपरायण शासकों में गिना जाता है। इसके बाद 1732 ई. में मराठा शासक राणोजी सिंधिया ने महाकालेश्वर मंदिर सहित नागचंद्रेश्वर मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।

दर्शन व्यवस्था: सुरक्षा के साथ भक्ति

साल में केवल एक बार खुलने वाले इस मंदिर में दर्शन के लिए देशभर से हजारों श्रद्धालु उज्जैन पहुंचते हैं। प्रशासन ने दर्शन व्यवस्था को सुचारू बनाए रखने के लिए विशेष सुरक्षा और लाइन व्यवस्था की है। श्रद्धालुओं को मोबाइल फोन, कैमरा, बैग आदि लेकर जाने की अनुमति नहीं होती है। सुरक्षा बलों के साथ-साथ स्वयंसेवी संस्थाएं भी दर्शन व्यवस्था में सहयोग करती हैं।

नागचंद्रेश्वर मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक विरासत और स्थापत्य कला का एक बेजोड़ उदाहरण भी है। हर साल सिर्फ एक दिन खुलने वाला यह मंदिर भक्ति, रहस्य और इतिहास का संगम प्रस्तुत करता है।

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