फ्यूंला नारायण : आस्था, परंपरा और नारी शक्ति का अनूठा संगम
10 हजार फीट की ऊंचाई पर विराजमान चतुर्भुज विष्णु, यहां केवल महिलाएं करती हैं भगवान की सेवा भूमियाल देवता से लेकर वनदेवी तक, पौराणिक आस्था से जुड़ा अनूठा तीर्थ स्थल

फ्यूंला नारायण : आस्था, परंपरा और नारी शक्ति का अनूठा संगम
चमोली, 18 जुलाई: उत्तराखंड के चमोली जिले की उर्गम घाटी में समुद्रतल से करीब 10 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित फ्यूंला नारायण मंदिर के कपाट शुक्रवार को विधिविधान और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोल दिए गए। इस पावन अवसर पर घाटी के ग्रामीणों के साथ करीब डेढ़ सौ श्रद्धालु मौजूद रहे, जिन्होंने पूजा-अर्चना कर भगवान विष्णु के जयकारों से वातावरण को भक्तिमय बना दिया।
यह मंदिर केवल अपनी भव्यता और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए नहीं, बल्कि अपनी अनूठी परंपराओं और धार्मिक आस्था के लिए भी प्रसिद्ध है। सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार यहां भगवान विष्णु की पूजा केवल महिलाएं ही करती हैं। यहां 10 साल से कम उम्र की कन्याएं या 50 वर्ष से अधिक आयु की महिलाएं ही मुख्य पुजारिन का दायित्व संभालती हैं। इस वर्ष राजेश्वरी देवी (प्रसिद्ध रूप में राजी देवी) ने कपाट खुलने के दिन पूजा की कमान संभाली।
महिला पुजारी परंपरा : धार्मिक आस्था में नारी शक्ति का उदाहरण
फ्यूंला नारायण मंदिर महिलाओं को धार्मिक परंपरा में विशेष सम्मान देने वाला ऐसा अनूठा स्थान है, जहां देवी-देवताओं की पूजा का अधिकार केवल स्त्रियों को ही प्राप्त है। यह परंपरा न केवल श्रद्धा की मिसाल है, बल्कि नारी शक्ति के सम्मान और धर्म में उनकी समान भागीदारी का प्रतीक भी बन चुकी है। इस परंपरा के तहत छोटी कन्याओं और 50 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं ही मंदिर की पूजा-पाठ की जिम्मेदारी निभाती है।
इतिहास और पौराणिक मान्यता
फ्यूंला नारायण मंदिर का उल्लेख कतिपय पौराणिक कथाओं और लोकगाथाओं में भी मिलता है। कहा जाता है कि यह स्थान स्वयं भगवान विष्णु के तपस्थली के रूप में स्थापित हुआ था। उर्गम घाटी में पंचकेदार यात्रा का एक मुख्य मार्ग भी इसी क्षेत्र से होकर गुजरता है। फ्यूंला नारायण मंदिर को ‘नरायण भूमि का प्रहरी’ भी कहा जाता है।
यहां भगवान विष्णु की चतुर्भुज स्वरूप में भव्य मूर्ति विराजमान है। साथ ही महालक्ष्मी और द्वारपाल जय-विजय की मूर्तियां भी स्थापना के समय से ही यहाँ पूजित हैं। मंदिर परिसर में भूमियाल देवता, घंटाकर्ण, वनदेवी नंदा-सुनंदा और दाणू देवता की पूजा भी अनिवार्य मानी जाती है। यहां पूजा से पहले इन लोकदेवताओं का आह्वान कर विशेष पूजा की जाती है, तभी मुख्य मंदिर के कपाट खोले जाते हैं।
आस्था के साथ प्रकृति का संगम
यह मंदिर हिमालयी घाटी के अत्यंत सुरम्य और शुद्ध वातावरण में स्थित है। चारों ओर ऊँचे पहाड़, हरे-भरे जंगल और प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण यह स्थल सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि मानसिक और आत्मिक शांति के लिए भी आदर्श माना जाता है। मंदिर के कपाट मई से अक्तूबर माह तक श्रद्धालुओं के लिए खुले रहते हैं। शेष समय यह क्षेत्र बर्फबारी के कारण संपर्कविहीन हो जाता है।
मुख्य विशेषताएं
- स्थान : उर्गम घाटी, चमोली
- ऊंचाई : 10,000 फीट
- मुख्य देवता : चतुर्भुज नारायण (विष्णु)
- विशेष परंपरा : महिला पुजारी (10 वर्ष से कम आयु की कन्याएं या 50 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं)
- लोक देवता : भूमियाल, घंटाकर्ण, दाणू, नंदा-सुनंदा
- दर्शन काल : मई से अक्तूबर तक