धर्मधर्म/संस्कृति
Trending

धर्म

 विपरीत ध्रुव — शक्ति और समृद्धि का संघर्ष

देहरादून, 14 जुलाई :

हिंदू धर्मग्रंथों में वर्णित प्रमुख पात्र — रावण और कुबेर — एक ही ऋषि विश्वश्रवा की संतान होते हुए भी अपने जीवन, कर्म और सिद्धांतों में एक-दूसरे के ठीक विपरीत थे। जहाँ एक ओर कुबेर को समृद्धि और संयम का प्रतीक माना गया, वहीं रावण को असीम शक्ति, विद्वता और अंततः अहंकार के पतन का पर्याय माना जाता है।

रावण और कुबेर का यह पारिवारिक, वैचारिक और राजनीतिक टकराव केवल एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि धर्म और अधर्म, संतुलन और अति, संयम और दंभ की स्थायी संघर्ष गाथा है, जो आज भी समाज को शिक्षा देती है।


सौतेले भाई, पर वैचारिक शत्रु

ऋषि पुलस्त्य के पुत्र विश्वश्रवा की दो पत्नियाँ थीं — इलाविदा और कैकेसी। इलाविदा से जन्मे कुबेर यक्षों के अधिपति और देवताओं के कोषाध्यक्ष बने, जबकि कैकेसी के पुत्र रावण, कुंभकर्ण, विभीषण और शूर्पणखा राक्षस वंश में जन्मे।
कुबेर को देवताओं ने अलकापुरी का राजा बनाया और उन्हें धन का देवता माना, लेकिन रावण ने अपनी तपस्या और शक्ति के बल पर कुबेर को ही युद्ध में पराजित कर लंका पर अधिकार कर लिया।


लंका विजय और पुष्पक विमान पर कब्जा

पुराणों के अनुसार रावण ने जब अनेक वरदान प्राप्त कर लिए, तब उसका अहंकार चरम पर पहुँच गया। उसने अलकापुरी पर आक्रमण कर अपने ही सौतेले भाई कुबेर को पराजित कर दिया। रावण ने न केवल लंका पर कब्जा किया बल्कि कुबेर के ‘पुष्पक विमान’ को भी छीन लिया।

यही पुष्पक विमान बाद में रामायण के युद्ध उपरांत भगवान राम द्वारा अयोध्या वापसी के लिए प्रयुक्त किया गया था।


रिपोर्ट: अभिषेक कुमार मिश्रा

Related Articles

Back to top button