धर्म
Trending

हरछठ आज , माताएं करेंगी संतान की लंबी आयु की कामना

आज नहीं खाएंगी हल से जुता कोई भी अनाज

भगवान श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्मोत्सव होता है भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को 

देहरादून , 14 अगस्त: सावन-भाद्रपद की सुगंध और भक्ति का संगम, माताओं की आस्था का पर्व—हरछठ आज 14 अगस्त, गुरुवार को मनाया जाएगा। इसे ललही  छठ भी कहते हैं। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि पर पड़ने वाला यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी का जन्मोत्सव है। ग्रामीण से लेकर शहरी क्षेत्रों तक, महिलाएं इस दिन अपनी संतान के दीर्घायु और सुख-समृद्ध जीवन की कामना के साथ व्रत रखती हैं।

भारत जैसे विविध संस्कृति वाले देश में हर महीने अलग-अलग त्योहार और व्रत अपनी-अपनी मान्यताओं के साथ मनाए जाते हैं। भाद्रपद का महीना विशेष रूप से धार्मिक उत्सवों का संगम है—कृष्ण जन्माष्टमी, राधा अष्टमी, गणेश चतुर्थी, अनंत चतुर्दशी से लेकर हरछठ व्रत तक। भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव इस बार 16 अगस्त को मनाया जाएगा। इससे पहले 14 अगस्त को उनके बड़े भाई बलराम की जयंती मनाई जाएगीयह समय श्रद्धा, परंपरा और परिवार के एकजुट होने का प्रतीक माना जाता है। हरछठ का व्रत उत्तर प्रदेश, एमपी, छत्तीसगढ़ में खास तौर पर मनाया जाता है।

हरछठ व्रत तिथि और समय

तिथि प्रारंभ: 14 अगस्त, सुबह 4:23 बजे

तिथि समाप्त: 15 अगस्त, सुबह 2:07 बजे

व्रत का मुख्य पालन 14 अगस्त की सुबह से दिनभर किया जाएगा।

व्रत का महत्व

बलराम जी हल और कृषिकर्म के देवता माने जाते हैं।पौराणिक मान्यता है कि भाद्रपद कृष्ण षष्ठी को भगवान बलराम जी का जन्म हुआ था। वे हल और मूसल धारण करने वाले, धरती की उर्वरता और शक्ति के प्रतीक माने जाते हैं। इस दिन खेती से जुड़े अन्न से परहेज़ धरती माता को सम्मान देने की परंपरा है।इसीलिए इस दिन हल से जोते अन्न का सेवन नहीं किया जाता। इस दिन महुए का आटा, सिंघाड़े का आटा आदि खा सकते हैं। खासकर तालाब में उगी चीजें खा सकते हैं। इस दिन व्रती महिलाएं महुआ पेड़ की डाली का दातून, स्नान कर व्रत रखती हैं। इस पूजन की सामग्री में बिना हल जुते हुए जमीन से उगी हुई धान का चावल, महुआ के पत्ते, धान की लाई, भैंस का दूध-दही व घी आदि रखते हैं। गाय का दूध, दही और घी भी निषिद्ध है, जबकि भैंस के दूध से बनी चीजें ली जाती हैं। मान्यता है कि इस व्रत से बच्चों के जीवन में स्वास्थ्य, बल और आयु का आशीर्वाद मिलता है।

पूजा  की विधि

स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल को साफ करें । यदि आप पहली बार इस व्रत को करने जा रही हैं तो इससे जुड़ी सामग्री जैसे पलाश की टहनी, कुशा, छह प्रकार के अनाज जैसे गेंहू, चना, धान, जौ, अरहर, मक्का, मूंग, महुआ, पुष्प, फल, आदि इकट्ठा करके रख लें । सारे सामान को इकट्ठा करने के बाद एक चौकी पर छठी माता का चित्र रखें. भगवान बलराम, श्रीकृष्ण और हल की प्रतिकृति स्थापित करें। उनके साथ गणेश-गौरी, कलश, आदि रखकर उनकी विधि-विधान से पूजा करें। हरछठ की पूजा दोपहर के समय में की जाती है। इसके लिए मध्य काल का समय देखा जाता है। मध्यकाल सुबह 10 बजे से लेकर दोपहर 2 बजे के बीच में होगा। इस व्रत में कथा दोपहर में ही पढ़ी जाती है और पूजा के बाद आरती की जाती है। पूजा के अंत में छठी माता और गणेश गौरी की आरती करके सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मांगे। महुआ, सतव्य (सात अनाज), फल-फूल और भैंस के दूध से बनी मिठाई अर्पित करें। हलषष्ठी कथा का पाठ करें और प्रसाद वितरित करें।

शुभ मुहूर्त

ब्रह्म मुहूर्त: 4:13 से 4:57 बजे

अभिजीत मुहूर्त: 11:57 से 12:49 बजे

गोधूलि मुहूर्त: 6:58 से 7:23 बजे

क्या खाएं – क्या न खाएं

  • खाएं: महुआ, पसई, बिना हल से उगे अनाज, भैंस के दूध से बनी चीजें।
  • न खाएं: हल से जोते अन्न, गाय का दूध, दही, घी

हरछठ केवल एक व्रत नहीं, बल्कि मातृत्व के प्रेम और आशीर्वाद की अभिव्यक्ति है। यह पर्व हमें कृषि, धरती माता और संतान के स्वास्थ्य के प्रति सम्मान का संदेश देता है।

 

Related Articles

Back to top button