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“मल से मिटेगा कार्बन संकट! माइक्रोसॉफ्ट ने लगाई हजारों करोड़ की बाज़ी”

इंसानी मल, गोबर और कचरे से कार्बन हटाने की क्रांति, माइक्रोसॉफ्ट ने अमेरिका में ₹14,000 करोड़ लगाए,

जिसे हम गंदगी समझते हैं, माइक्रोसॉफ्ट उसे अरबों की संपत्ति बना रहा है

जिस कचरे को हम रोज़ की ज़िंदगी में घिन और झुंझलाहट से देखते हैं — इंसानी मल, गोबर, किचन वेस्ट — आज वही विकसित देशों में जलवायु संकट से लड़ने का हथियार बन रहा है।

दुनिया की टेक दिग्गज कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने एक ऐसा समझौता किया है, जो बताता है कि अब क्लाइमेट एक्शन सिर्फ भाषणों का नहीं, बायोवेस्ट के सही इस्तेमाल का खेल है।

कंपनी ने अमेरिका की क्लाइमेट स्टार्टअप Vaulted Deep के साथ ₹14,000 करोड़ का करार किया है। इस डील के तहत, अगले 12 सालों में 49 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड को स्थायी रूप से वातावरण से हटाया जाएगा, और ये काम होगा बायोवेस्ट — यानी इंसानी मल, जानवरों के गोबर, पेपर स्लज और कृषि कचरे — के ज़रिए।

 क्या है Vaulted Deep तकनीक और कैसे काम करती है?

Vaulted Deep की तकनीक दिखने में जितनी साधारण, असर में उतनी ही शक्तिशाली है। इसमें बायोसॉलिड्स, गोबर और अन्य जैविक कचरे को तरल रूप में बदला जाता है फिर उसे जमीन के हजारों फीट नीचे चट्टानों की परतों में इंजेक्ट किया जाता है। वहां ये कार्बन स्थायी रूप से बंद हो जाता है — ना रिसाव, ना उत्सर्जन, ना वापसी।

इसके दो प्रमुख फायदे हैं:

  •  वातावरण से CO₂ को स्थायी रूप से हटाना
  • मीथेन जैसी ज़हरीली गैसों के उत्सर्जन को रोकना

एक टन कार्बन हटाने में लगभग ₹30,000 की लागत आती है, फिर भी माइक्रोसॉफ्ट ने इसे चुना — क्योंकि यह सिर्फ दिखावटी समाधान नहीं, बल्कि लॉन्ग टर्म क्लाइमेट एक्शन है।

🌐 दुनिया की कंपनियों में शुरू हो चुकी है दौड़

माइक्रोसॉफ्ट अकेली नहीं है। अब गूगल, अपने डेटा सेंटर्स को 24×7 ग्रीन एनर्जी से चलाने पर फोकस कर रही है। अमेजन ने दुनिया की सबसे बड़ी रिन्यूएबल इन्वेस्टमेंट योजना चलाई है। मेटा (फेसबुक) भी बायो-क्लाइमेट इनोवेशन में पैसा लगा रही है। इन सभी को अब यह समझ आ गया है कि भविष्य की टेक्नोलॉजी तभी टिकेगी जब धरती बचेगी।

🇮🇳 भारत में क्या हो रहा है इस दिशा में?

भारत जैसे देश के पास बायोवेस्ट की कोई कमी नहीं है, लेकिन इस दिशा में काम अभी सीमित है। अब तक के प्रमुख प्रयास:

  • इंदौर, भोपाल, सूरत जैसे शहरों में कुछ बायो-CNG प्लांट्स चल रहे हैं
  • इनमें इंसानी मल और गोबर से गैस तो बनती है, लेकिन कार्बन कैप्चर नहीं होता
  • IIT मद्रास, TERI जैसी संस्थाएं इस पर शोध कर रही हैं, पर वह भी अभी प्रयोगशाला स्तर पर है

असली कमी कहाँ है? असली कमी है नीति में स्पष्टता की कमी, सामाजिक सोच में झिझक (मल, गोबर को “गंदगी” मानना), साथ हीवेस्ट मैनेजमेंट योजनाओं में गंभीर क्रियान्वयन की कमी।

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारत में यह तकनीक स्थानीय संसाधनों और जरूरतों के हिसाब से ढल जाए, तो यह लाखों गांवों में रोज़गार पैदा कर सकती है,  शहरों की स्वच्छता और कचरा संकट कम कर सकती है। और सबसे अहम — जलवायु परिवर्तन की लड़ाई में भारत की लीडरशिप स्थापित कर सकती है

क्या कहते हैं विशेषज्ञ 

“Vaulted Deep की तकनीक भारत में पूरी तरह लागू की जा सकती है — बस उसके लिए इच्छाशक्ति और समन्वय चाहिए।”

— डॉ. अनुज मिश्रा, जलवायु नीति सलाहकार

“हम जिस कचरे को आंख मूंदकर फेंकते हैं, वही अगर संसाधन बन जाए, तो भारत की जलवायु नीति दुनिया के लिए मिसाल बन सकती है।”

— नीलिमा पांडे, बायोवेस्ट विशेषज्ञ

अब सवाल हमसे है — क्या हम अपनी ही मिट्टी से मुंह मोड़ते रहेंगे?

जब अमेरिका और माइक्रोसॉफ्ट जैसे संगठन मल और गोबर को अरबों की तकनीक बना रहे हैं, तब भारत में वही चीजें राजनीति, नफरत या उपेक्षा में बर्बाद हो रही हैं। अब वक्त है सोचने का — क्या हम सिर्फ स्लोगन लगाते रहेंगे?

या फिर अपना ‘मॉडल भारत’ बनाएंगे — जहां गोबर, कचरा और बायोसॉलिड्स सफाई और समाधान का ज़रिया होंगे, शर्म का नहीं।

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