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बंदर’: तालियों के बीच उठे सवाल

वाहवाही और आलोचना के बीच खड़ा सिनेमा का नया चेहरा

जब कोई भारतीय फिल्म अंतरराष्ट्रीय मंच पर तालियों की गड़गड़ाहट के बीच चर्चा का विषय बन जाए और साथ ही देश में विवादों की आंधी खड़ी कर दे, तो यह केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि एक घटना बन जाती है। हाल ही में टोरंटो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (TIFF) में प्रीमियर हुई ‘बंदर’ (Monkey in a Cage) ऐसी ही एक घटना है—जिसने दर्शकों को झकझोरने के साथ-साथ भारतीय सिनेमा को एक नई पहचान दी है।

TIFF में ‘बंदर’ की गूंज

पचासवें TIFF में जब ‘बंदर’ प्रदर्शित हुई, तो स्क्रीन पर छाई खामोशी दर्शकों के चेहरों तक उतर आई। जैसे ही फिल्म खत्म हुई, पूरा हॉल तालियों से गूंज उठा। विदेशी मीडिया ने इसे “भारतीय सिनेमा की सबसे बहस-उत्प्रेरक फिल्मों में से एक” करार दिया।

किस वजह से विवादों में?

‘बंदर’ समाज की उन दरारों पर चोट करती है, जिन्हें अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है—#MeToo, न्यायिक प्रक्रिया की जटिलताएँ और जेल व्यवस्था की कठोर हकीकत। फिल्म किसी पक्ष को दोषी ठहराने की बजाय उस व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करती है, जो पीड़ित और आरोपी दोनों को अधर में छोड़ देती है। यही कारण है कि फिल्म को लेकर वाहवाही के साथ-साथ विवाद भी बराबर चल रहे हैं।

बॉबी देओल का अप्रत्याशित रूप

फिल्म में सबसे ज्यादा चर्चा में हैं बॉबी देओल। उनका किरदार दर्शकों को परत-दर-परत खोलते हुए भीतर तक हिला देता है। TIFF में उनके अभिनय को स्टैंडिंग ओवेशन मिला और समीक्षकों ने इसे उनके करियर का अब तक का सबसे साहसिक रोल बताया।

सान्या मल्होत्रा और दमदार कास्ट

सान्या मल्होत्रा ने टूटे हुए लेकिन सशक्त चरित्र को जिस सहजता से जिया है, वह लंबे समय तक याद रहेगा। इसके साथ ही राज बी शेट्टी, रिद्धि सेन, सबा आज़ाद और नजाम भोन्सले जैसे कलाकारों ने फिल्म को गहराई दी है। यह साबित करता है कि बिना बड़े नामों के भी सिनेमा दर्शकों पर गहरा असर छोड़ सकता है।

मेकर्स के लिए क्यों है बड़ी बात?

‘बंदर’ का चयन TIFF के स्पेशल प्रेजेंटेशन सेक्शन में हुआ है, जहां दुनिया की चुनिंदा और बेहतरीन फिल्में दिखाई जाती हैं। यहां तक पहुँचना भारतीय सिनेमा के लिए सम्मान की बात है, क्योंकि TIFF से कई फिल्में सीधे ऑस्कर और अन्य प्रतिष्ठित पुरस्कारों की दौड़ तक जाती रही हैं।

सवाल और आईना 

‘बंदर’ केवल मनोरंजन नहीं देती, बल्कि बेचैन करती है और सवाल छोड़ जाती है। अंतरराष्ट्रीय समीक्षकों के मुताबिक, यह फिल्म “एक ऐसा आईना है, जिसमें समाज अपना कुरूप चेहरा देख सकता है।”

‘बंदर’ इस बात का सबूत है कि भारतीय सिनेमा अब सिर्फ गाने और ग्लैमर तक सीमित नहीं रहा, बल्कि वह अंतरराष्ट्रीय बहस का हिस्सा बनने लगा है।

अब बड़ा सवाल यही है—जब यह फिल्म भारत में रिलीज़ होगी, तो क्या दर्शक इसे उसी खुले दिल से अपनाएंगे, जैसे TIFF के मंच पर इसे सराहा गया है?

 

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