उत्तराखंडधर्म

वामन द्वादशी पर माता से मिलने माणा पहुंचे भगवान बद्री विशाल 

माता पुत्र के ऐतिहासिक मिलन के साक्षी बने हज़ारों श्रद्धालु

बद्रीनाथ, 4  सितंबर: उत्तराखंड के बदरीनाथ धाम में वामन द्वादशी के पावन पर्व पर भगवान बदरीविशाल अपनी माता से मिलने माणा गांव स्थित मंदिर पहुँचे। माता-पुत्र के इस अनोखे मिलन को देखने के लिए हजारों श्रद्धालु उमड़े।

यह परंपरा माता और पुत्र के अटूट बंधन का प्रतीक है, जिसे हर साल वामन द्वादशी के अवसर पर पूरी श्रद्धा और उल्लास के साथ निभाया जाता है।

भव्य यात्रा और पारंपरिक स्वागत

सुबह 9:30 बजे बाल भोग के बाद भगवान बदरीविशाल के प्रतिनिधि श्री उद्धव जी गर्भगृह से बाहर आए और मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए। सेना के बैंड की मधुर धुनों और श्रद्धालुओं के ‘जय बदरीविशाल’ के जयकारों के बीच भगवान की डोली, श्री उद्धव जी और आदिगुरु जी की डोली के साथ माणा गांव के लिए रवाना हुई। यात्रा के दौरान माणा गांव की महिलाओं ने पारंपरिक रूप से जौ की हरियाली भेंट कर डोली का भव्य स्वागत किया।

माणा गांव में मां मूर्ति ने भगवान नारायण को खिलाई खीर 

वामन द्वादशी के पावन पर्व पर माणा गांव में सदियों पुरानी परंपरा का भव्य आयोजन किया गया। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इस दिन भगवान नारायण अपनी माता मूर्ति के हाथों से खीर ग्रहण करने के लिए भारत के पहले गांव माणा आते हैं। इस विशेष अवसर पर गांव में पूजा-अर्चना का आयोजन किया गया और महिलाओं ने पारंपरिक वेशभूषा में भगवान नारायण का भव्य स्वागत किया। स्वागत की इस रंगारंग परंपरा ने पूरे वातावरण को भक्तिमय बना दिया।

बद्रीनाथ धाम के धर्माधिकारी राधाकृष्ण थपलियाल ने बताया कि यह परंपरा कई सदियों से चली आ रही है। बावन द्वादशी के दिन आयोजित इस मेले में भगवान नारायण माता के हाथों बने प्रसाद का ग्रहण करते हैं। इस मौके पर बद्रीनाथ धाम के मुख्य पुजारी रावल अमरनाथ नंबूदरी, वेदपाठी रविन्द्र भट्ट, बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के उपाध्यक्ष ऋषि प्रसाद सती और पूर्व धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल सहित कई गणमान्य व्यक्तियों ने भाग लिया।

धार्मिक मान्यता और परंपरा का इतिहास

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सतयुग में नर-नारायण ने माता से तपस्वी बनने का वरदान मांगा था। माता ने वचन दिया कि वे साल में एक बार उनसे मिलने आएंगे। तभी से यह परंपरा चल रही है।

मंदिर के कपाट बंद, भक्तों में उत्साह

सुबह 10 बजे से दोपहर 3 बजे तक बदरीनाथ मंदिर के कपाट बंद रहे, क्योंकि इस दौरान भगवान ने अपनी माता की गोद में भोग और अभिषेक ग्रहण किया। माता-पुत्र के इस अद्भुत मिलन को देखने के लिए श्रद्धालुओं में गजब का उत्साह देखा गया।

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