तबाही के बाद टूटी नींद, बढ़ा दर्द
मानसिक आघात और शारीरिक परेशानियों से जूझ रहे आपदा प्रभावित

धराली आपदा पीड़ितों में बढ़ा बीपी, नींद भी हुई गायब, मेडिकल टीम कर रही विशेष उपचार
उत्तरकाशी, 13 अगस्त: हालिया आपदा के बाद धराली गांव के लोग गहरे सदमे में हैं। घर, कारोबार और अपनों को खोने के बाद अब ग्रामीण मानसिक और शारीरिक बीमारियों से भी जूझ रहे हैं। कई पीड़ितों का रक्तचाप बढ़ गया है, नींद उड़ गई है और चिंता-घबराहट जैसी समस्याएं सामने आ रही हैं।
गांव में हर ओर मायूसी का माहौल है। कई घर मलबे में दब गए, दुकानें और होमस्टे पूरी तरह तबाह हो चुके हैं। लोग सुरक्षित जगहों पर टेंट या अस्थायी शरण स्थलों में रह रहे हैं। दिन में राहत सामग्री के लिए कतारें लगती हैं, तो रात को बारिश और पहाड़ों से गिरते पत्थरों का डर बना रहता है। बच्चे अपने स्कूल और दोस्तों से दूर हैं, बुजुर्ग घर के खंडहरों को देख कर रो पड़ते हैं।
इन्हीं हालात में राहत शिविरों में चिकित्सा सुविधा शुरू की गई है। देहरादून से आई विशेष टीम में सर्जन डॉ. परमार्थ जोशी, निश्चेतक (एनस्थेटिस्ट) डॉ. संजीव कटारिया और मनोचिकित्सक डॉ. रोहित गोंदवाल शामिल हैं, जो रोजाना करीब सौ मरीजों का इलाज कर रहे हैं। जांच में पाया गया कि प्रभावितों में 25 से 30 प्रतिशत लोग मानसिक तनाव, एंग्जायटी और एडजस्टमेंट डिसऑर्डर से पीड़ित हैं।
लोगों को हो रही प्रमुख समस्याएं:
- घटना की बार-बार याद आना और नींद न आना
- घबराहट और बेचैनी
- रक्तचाप (बीपी) का बढ़ना
- बच्चों में खांसी, जुकाम और दस्त
- बुखार, बदन दर्द और थकान
धराली में तबाही के बाद के 5 बड़े संकट
- मानसिक आघात – घटना की बार-बार याद, नींद न आना, घबराहट और चिंता।
- स्वास्थ्य समस्याएं – बीपी बढ़ना, बुखार, बदन दर्द, थकान और दस्त।
- बच्चों की मुश्किलें – खांसी-जुकाम, स्कूल से दूरी और डर का माहौल।
- आवास की कमी – घर मलबे में दबे, अस्थायी टेंट और शरण स्थलों में रहना।
- भविष्य की अनिश्चितता – आजीविका खत्म, पुनर्निर्माण में समय और संसाधनों की कमी
डॉक्टरों के मुताबिक सबसे ज्यादा असर 35 से 50 वर्ष की उम्र के लोगों पर पड़ा है, जिन्होंने जीवनभर की कमाई से घर और कारोबार बनाए थे, जो आपदा में नष्ट हो गए। अब तक हर्षिल पीएचसी में 30 लोग भर्ती हो चुके हैं।
मनोचिकित्सक डॉ. रोहित गोंदवाल का कहना है कि इस तरह के मानसिक विकार सामान्यत: 7 से 10 दिन में काउंसलिंग और दवाओं से सुधरने लगते हैं, लेकिन कुछ मामलों में यह समस्या छह महीने तक भी बनी रह सकती है। राहत शिविर में दवा, परामर्श और मानसिक सहयोग लगातार जारी है, ताकि पीड़ित जल्द सामान्य जीवन में लौट सकें।