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पटरियों पर दौड़ा ‘रुद्रास्त्र’: लंबाई इतनी की गिनना मुश्किल

सात इंजन, 354 वैगन और और लंबाई साढ़े चार किलोमीटर

 

मालगाड़ियों का मेगा एडवेंचर: ‘रुद्रास्त्र’ ने एशिया में बनाया नया इतिहास

क्या आपने कभी ऐसी ट्रेन देखी है, जिसके आगे-पीछे नज़र डालो तो उसका सिरा ही न दिखे? भारतीय रेलवे ने ऐसा ही कमाल कर दिखाया है। पूर्व मध्य रेलवे के पंडित दीनदयाल उपाध्याय मंडल से रवाना हुई ‘रुद्रास्त्र’ मालगाड़ी ने पटरियों पर ऐसा इतिहास रच दिया, जो एशिया में अब तक किसी ने नहीं किया था।

करीब 4.5 किलोमीटर लंबी, सात दमदार इंजनों से लैस और 354 वैगनों से सजी इस ट्रेन ने न केवल लंबाई का रिकॉर्ड तोड़ा, बल्कि माल ढुलाई की नई संभावनाओं के दरवाज़े खोल दिए। इसे चलाने के लिए 12 लोको पायलट और कुल 27 सदस्यीय क्रू की टीम लगी, जिनके तालमेल ने यह कारनामा संभव किया

रुद्रास्त्र’ क्यों है खास?

‘रुद्रास्त्र’ सिर्फ लंबाई में ही रिकॉर्ड नहीं तोड़ती, बल्कि इसके पीछे जो तकनीकी और लॉजिस्टिक चुनौतियां थीं, उन्हें पार कर भारतीय रेलवे ने एक नई मिसाल कायम की है। इतने लंबे मालगाड़ी को चलाना अपने आप में एक बड़ी चुनौती है क्योंकि जितनी लंबाई बढ़ती है, उतना ही इंजन का संतुलन और ट्रैक पर दबाव बनाए रखना कठिन हो जाता है। इसलिए, इस ट्रेन में सात इंजन लगे थे, जिन्हें सावधानी से इस तरह व्यवस्थित किया गया कि पूरा भार समान रूप से बंट जाए और ट्रेन के हर हिस्से को समान गति मिलती रहे।

इतने लंबे मालगाड़ी को रोकना और फिर से चलाना भी चुनौतीपूर्ण होता है क्योंकि ब्रेकिंग सिस्टम पर ज्यादा दबाव पड़ता है। ट्रेन के संचालन के दौरान इसे दो हिस्सों में बांटा गया ताकि माल उतराने का काम सुरक्षित और तेज़ हो सके, जिससे ट्रैफिक जाम या माल क्षति का खतरा कम हो।

इस पूरी प्रक्रिया के लिए 12 अनुभवी लोको पायलट और 27 सदस्यों की टीम ने मिलकर काम किया, जिनका तालमेल और समन्वय इस सफलता की सबसे बड़ी वजह माना जा रहा है।

इस तकनीक से न सिर्फ ईंधन की बचत होगी, बल्कि ट्रैक की उम्र भी बढ़ेगी क्योंकि एक लंबी ट्रेन को कम बार चलाना पड़ता है, जिससे ट्रैक पर बार-बार दबाव कम पड़ता है। साथ ही, माल की ढुलाई तेज़ होगी, जिससे पूरे देश की आर्थिक गतिशीलता को बढ़ावा मिलेगा।

इसलिए ‘रुद्रास्त्र’ एक सामान्य मालगाड़ी से कहीं अधिक है — यह भारतीय रेलवे की तकनीकी प्रगति और भविष्य की तैयारियों का प्रतीक है।

ट्रायल रूट और संचालन

रुद्रास्त्र का ट्रायल रन उत्तर प्रदेश के गंजख्वाजा स्टेशन से शुरू होकर झारखंड के गढ़वा रोड तक किया गया। इस दौरान इस ट्रेन ने लगभग 401 किलोमीटर का सफर तय किया। रास्ते में कई महत्वपूर्ण स्टेशन थे, जैसे नवीनगर, जापला, गढ़वा, डाल्टनगंज, बरवाड़ी, लेटहार और तोरी।

पूरी ट्रेन के 354 वैगनों को दो हिस्सों में बांटकर उतारा गया — 118 वैगन फुलबासिया साइडिंग पर और 236 वैगन श्योपुरी साइडिंग पर। यह रणनीति माल की सुरक्षा और उतारने की गति दोनों के लिए फायदेमंद साबित हुई।

ट्रायल के दौरान ट्रेन की औसत रफ्तार लगभग 40 किलोमीटर प्रति घंटा रही, जो इस लंबाई और वजन के लिए बहुत अच्छी मानी जाती है।

रुद्रास्त्र’ से क्या हैं उम्मीदें 

रेलवे अधिकारियों का मानना है कि इस तरह की लंबी और शक्तिशाली मालगाड़ियों के आने से देश में माल ढुलाई की क्षमता और तेज़ होगी। इससे डीज़ल की बचत होगी, ट्रैक की देखभाल बेहतर होगी और भारी माल जैसे कोयला, खनिज, सीमेंट आदि की ढुलाई तेज़ और किफायती बनेगी।

Dhanbad डिवीजन, जो पिछले वर्षों में माल राजस्व में अव्वल रहा है, इस ट्रायल को अपनी क्षमता बढ़ाने की दिशा में अहम कदम मानता है।

रुद्रास्त्र’ केवल एक ट्रेन नहीं, बल्कि भारतीय रेलवे की आधुनिकता और भविष्य की सफलता का प्रतीक है ।रुद्रास्त्र’ की इस अभूतपूर्व उपलब्धि ने भारतीय रेलवे की तकनीकी क्षमताओं और संचालन दक्षता को नए आयाम प्रदान किए हैं।

यह सफलता न केवल माल ढुलाई की प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बनाएगी, बल्कि राष्ट्रीय आर्थिक विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान देगी। इस प्रकार के प्रगतिशील प्रयास भारतीय रेल को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी और आधुनिक बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैं।

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