मौन की भाषा समझने वाला दोस्त जो तुम्हारे शब्दों से नहीं, तुम्हारी चुप्पी से भी बात करता है
मौन की भाषा समझने वाला दोस्त जो तुम्हारे शब्दों से नहीं, तुम्हारी चुप्पी से भी बात करता है

दोस्ती: एक ऐसा रिश्ता जो दिल की ज़मीन पर पनपता है
मित्रता दिवस विशेष
गीता मिश्रा
यह रिश्ता खून से नहीं जुड़ा होता, लेकिन उससे कहीं ज़्यादा गहरा होता है। जिसके साथ आप अपना हर डर, हर सपना, हर सच बाँट सकते हैं — वो दोस्त होता है। उसे कोई सामाजिक नाम नहीं चाहिए, न ही कोई औपचारिकता।
क्योंकि दोस्ती आत्मा से जुड़ती है, पहचान से नहीं। यह वह बंधन है जो समय, दूरी और हालात की सीमाएं लांघकर भी कायम रहता है।
दुनिया के हर रिश्ते में कुछ न कुछ चाहिए होता है — समय, समर्पण, समझौता। पर दोस्ती वह रिश्ता है जो सिर्फ दिल से निभाया जाता है। वहाँ जीत-हार का कोई मतलब नहीं होता, वहाँ केवल साथ होता है — बिना वजह, बिना मोल।
यदि तुम्हारे जीवन में कोई ऐसा है…जिससे तुम अपने सबसे कमजोर हिस्से छिपाए बिना बात कर सको, जो तुम्हारी खामोशी को पढ़ ले और तुम्हारी आंखों में छिपी थकान को समझ ले — तो तुम्हें उस इंसान को ‘दोस्त’ कहने का सौभाग्य मिला है। और यही सौभाग्य, इस जीवन का सबसे कीमती तोहफा होता है।
जहाँ भरोसा जन्म लेता है, वहीं दोस्ती खिलती है
दोस्ती की शुरुआत अक्सर अनजाने पलों में होती है — एक साझा हँसी, कोई मदद का हाथ, या बस एक नज़रों की समझ। धीरे-धीरे यह रिश्ता उस स्तर पर पहुँचता है जहाँ बोलने की ज़रूरत नहीं रह जाती, और मौन ही संवाद बन जाता है।
वो साथ जो उम्र नहीं पूछता
दोस्ती की कोई उम्र नहीं होती। स्कूल की यूनिफॉर्म में बँधी, कॉलेज के कैम्पस में पकी, दफ्तर की थकान में मुस्कान बनी — दोस्ती हर दौर में साथ चलती है। कोई बचपन में मिला साथी हो या अधेड़ उम्र में मिला सहकर्मी, अगर वह दिल को पढ़ ले, तो वह दोस्ती हर उम्र में प्रासंगिक हो जाती है।
हर मोड़ पर जब कोई बिना कहे साथ हो
दुनिया जब शोर में खो जाती है, तो एक दोस्त ही होता है जो हमारी चुप्पियों को पढ़ पाता है। जो जानता है कि हँसी के पीछे कौन-सा दर्द छिपा है और थकी आँखों में कितनी रातें जागी हैं। और जब ज़िंदगी की रफ्तार थम जाती है, तो वही दोस्त बिना कुछ कहे हमारे साथ चलता है — न आगे, न पीछे — बस साथ।जब तकलीफ ज़ुबान तक न पहुँचे, वो उसे आंखों में पढ़ लेता है। जब आप खुद को सबसे कमजोर महसूस करते हैं, वही दोस्त आपकी रीढ़ बनता है।
हर रिश्ते को गहराई देती है दोस्ती
अगर जीवन के अन्य रिश्तों की जड़ों में ईमानदार दोस्ती हो, तो वे रिश्ते और भी मजबूत बन जाते हैं। एक जीवनसाथी जो पहले दोस्त हो, वहाँ संवाद आसान होता है। एक माँ जो बेटी की दोस्त भी हो, वहाँ विश्वास गहरा होता है। भाई-बहन की तकरार में भी अगर दोस्ती हो, तो मन जल्दी मिल जाते हैं।
दोस्तों के साथ लौट आते है गुजरे ज़माने
शब्द खत्म हो जाते हैं, मुलाकातें थम जाती हैं, लेकिन दोस्ती की खुशबू किसी चिट्ठी, पुराने नंबर या किसी गीत में जिंदा रहती है। जब कोई अचानक कह दे — “याद है उस दिन?” — तो दोस्ती फिर से उसी जोश में लौट आती है, जैसे वक़्त कभी गुजरा ही नहीं।
मित्रता दिवस पर एक ख़ामोश सा शुक्रिया
आज अगर किसी का चेहरा याद आ रहा है, जिसकी वजह से ज़िंदगी कभी थोड़ी आसान लगी थी — तो उसे एक संदेश ज़रूर भेजिए। क्योंकि कुछ रिश्तों का शुक्रिया शब्दों से नहीं, यादों से अदा किया जाता है।
यही है दोस्ती
जो चुपचाप तुम्हारे दुख के पास बैठती है,
और ख़ुशी में सबसे ज़्यादा ज़ोर से ताली बजाती है।
दोस्ती ऐसा ही रिश्ता है — न रिश्तेदार, न कोई सामाजिक बंधन, फिर भी सबसे ज्यादा अपने।