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“जब एक कलम विराम लेती है, तब एक युग बोल उठता है”

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किसी newsroom की हलचल में, किसी deadline की धड़कन में, किसी हेडलाइन की धार में — एक चेहरा था। वह चेहरा सिर्फ पत्रकार नहीं था, वह पत्रकारिता की आत्मा था।

और आज जब वह कलम औपचारिक रूप से थमती है, लगता है जैसे खबरों की दुनिया का एक युग सम्मानपूर्वक विराम ले रहा है।

उसने केवल समाचार नहीं लिखे — उसने समाज का मनोबल लिखा। उसने सत्ता से सवाल पूछे, जनता को जवाब दिए। उसकी हर रिपोर्ट, हर स्टोरी सिर्फ सूचनाएं नहीं, साहस और सच्चाई की मशाल थी।

आज वह रिटायर हो रहा है। लेकिन क्या वास्तव में वह जा रहा है?

नहीं।

वह अब भी रहेगा — उन युवाओं की आंखों में, जो पत्रकारिता को एक मिशन मानते हैं। वह अब भी गूंजेगा — उन कॉलमों में जो उसकी शैली से प्रेरणा लेंगे। वह अब भी जिएगा — उन संस्थानों में जिन्हें उसने अपनी गरिमा से मजबूती दी।

उसने इस पेशे को सिर्फ निभाया नहीं — जिया। सिर उठाकर, सच बोलकर, सही के साथ खड़े होकर।

अपने कंधों पर उसने न जाने कितने संस्थानों की साख उठाई, और कितनों के लिए रास्ता बनाया।

उसके योगदान को गिनती में नहीं बांधा जा सकता — क्योंकि वह सिर्फ फाइलों में नहीं, दिलों में दर्ज है।

अब समय है कि वह जीवन जिए — जिसे उसने हमेशा दूसरों के लिए स्थगित किया।

अब उसकी सुबहें डेडलाइन से नहीं, आत्मशांति से शुरू हों।

अब उसके शब्द किसी संपादक की स्वीकृति के मोहताज न हों, केवल आत्मा की संतुष्टि से बहें।

हम जानते हैं, वह पत्रकार अब भी हमारे बीच रहेगा — कभी मार्गदर्शक बनकर, कभी लेखक, कभी विचारक बनकर। क्योंकि उसकी पत्रकारिता कभी रिटायर नहीं हो सकती।

आपका होना ही प्रेरणा है।

आपका सफर एक मिसाल है।

और आपकी अगली यात्रा के लिए — दिल से शुभकामनाएं।

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