नागपंचमी पर विशेष: आज पीटी जाएंगी गुड़िया
29 जुलाई मंगलवार को मनाई जाएगी नागपंचमी

उत्तर प्रदेश के कई गांवों में आज भी जीवित है गुड़िया पीटने की परंपरा
जानिए क्या करें, क्या न करें और कैसे मिलेगा कालसर्प दोष से छुटकारा
नागपंचमी को लेकर उत्तर प्रदेश और खासकर पूर्वांचल के कई गांवों में आज भी एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है—जिसे ‘गुड़िया पीटना’ कहा जाता है। इस परंपरा के तहत मिट्टी की छोटी-छोटी गुड़ियां बनाई जाती हैं, जो प्रतीकात्मक रूप से नाग की पत्नी मानी जाती हैं। फिर गांव की महिलाएं और किशोरियाँ गीत गाते हुए इन गुड़ियों को पीटती हैं। लोक मान्यता है कि इससे नागदेवता के क्रोध से बचा जा सकता है और घर-परिवार पर सर्पदोष नहीं आता।
🐍 नागपंचमी की लोककथा: जब बहन ने मारा नाग और शुरू हुई गुड़िया पीटने की परंपरा
“भाई चला शिव मंदिर, चरण में नाग समाय।
बहन ने मारा मूढ़ मन, संकट घर छाय॥”
बहुत पुरानी बात है। एक गाँव में एक शिवभक्त युवक रहता था, जो रोज़ सुबह उठकर नदी में स्नान करता और फिर सीधे शिव मंदिर जाकर पूजा करता था। उसका जीवन पूरी तरह भक्ति में लीन था। कहते हैं, उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर नाग देवता स्वयं उसकी रक्षा के लिए उसके पैरों में लिपटकर मंदिर तक साथ जाते थे। यह सिलसिला रोज़ का था — युवक शांत रहता, नाग भी उसे कोई हानि नहीं पहुँचाता।
इस युवक की एक बहन थी, जो उसे बहुत मानती थी। एक दिन उसने अपने भाई को मंदिर जाते समय देखा कि उसके पैरों में एक सांप लिपटा हुआ है। वह घबरा गई। डर के मारे उसकी हालत खराब हो गई। जब भाई लौटकर आया, तो उसने बहन को सारी बात बताई — कि वह सांप कोई आम सांप नहीं, बल्कि नाग देवता हैं जो उसकी शिवभक्ति से प्रसन्न होकर उसकी रक्षा करते हैं। लेकिन बहन को यकीन नहीं हुआ। वह समझ नहीं पाई कि कोई सांप किसी इंसान के साथ ऐसे कैसे रह सकता है। उसने इसे खतरे की घंटी समझा। कुछ दिनों बाद जब उसका भाई मंदिर गया और वही सांप फिर से उसके पैरों में लिपटा हुआ था, तो बहन ने मौका देखकर डंडा उठाया और सांप को मार डाला। नाग देवता वहीं मंदिर के पास तड़पते हुए प्राण छोड़ बैठे।जब भाई लौटकर आया और यह दृश्य देखा, तो वह सन्न रह गया। उसे गहरा दुःख हुआ। उसने बहन से कहा, “तूने मेरे आराध्य को मार डाला… मेरी भक्ति के प्रतीक को। यह अज्ञानता नहीं, पाप है!” इसके बाद घर में अशांति फैलने लगी। बहन को रात में भयानक सपने आने लगे। गांव में अजीब घटनाएं होने लगीं। तब गांव के बुज़ुर्गों और पुरोहितों से सलाह ली गई। उन्होंने कहा, “तुमसे जो अपराध हुआ है, उसका पश्चाताप जरूरी है। नाग देवता को शांत करने के लिए हर साल नागपंचमी के दिन प्रतीकात्मक रूप से एक गुड़िया बनाओ और उसे पीटो, ताकि तुम्हारे अपराध की याद बनी रहे और भविष्य में ऐसी भूल कोई और न करे।”
उस घटना के बाद से ही यह परंपरा चल पड़ी कि नागपंचमी के दिन महिलाएं और लड़कियाँ एक गुड़िया बनाकर उसे सांप या बुराई का प्रतीक मानती हैं और उसे पीटती हैं। यह परंपरा आज भी उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों, खासकर पूर्वांचल में जीवंत है। गुड़िया पीटना न केवल एक धार्मिक रस्म बन गया है, बल्कि उस बहन की अज्ञानता और पश्चाताप की कथा को पीढ़ियों तक संजोए रखने का माध्यम भी बन गया है।
नागपंचमी: कालसर्प दोष से मुक्ति का पर्व
29 जुलाई, मंगलवार को श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को नागपंचमी का पर्व मनाया जाएगा। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन नागों की पूजा करने से कालसर्प दोष और नागदोष जैसे ग्रहदोष शांत होते हैं। विशेष रूप से उन जातकों के लिए यह दिन अत्यंत शुभ होता है जिनकी कुंडली में राहु-केतु के कारण कालसर्प दोष विद्यमान है।
कैसे बनता है कालसर्प दोष?
जब जन्म कुंडली में राहु और केतु के मध्य सभी ग्रह आ जाएं, तो कालसर्प दोष बनता है। यह दोष व्यक्ति के जीवन में बाधाएं, मानसिक तनाव, कार्य में रुकावट और संतान संबंधी समस्याएं उत्पन्न कर सकता है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, नागपंचमी पर विशेष पूजा करने से इस दोष से मुक्ति संभव है।
पूजन का शुभ मुहूर्त
पूजन का समय : मंगलवार, 29 जुलाई को पंचमी तिथि प्रातः 05:44 बजे से अगले दिन प्रातः 03:53 बजे तक रहेगी। इस दिन शिव योग, औदायिक योग, लक्ष्मी योग और सर्वार्थ सिद्धि योग का विशेष संयोग बन रहा है।
पूजा विधि:
- नागदेव की मिट्टी अथवा चांदी की प्रतिमा की स्थापना करें।
- उन्हें दूध, अक्षत, कुशा, काले तिल, चंदन और फूल अर्पित करें।
- “ॐ नमः शिवाय” और “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः” मंत्र का जाप करें।
- कालसर्प दोष निवारण के लिए शिवलिंग पर नाग-नागिन की युगल प्रतिमा चढ़ाएं।
क्या करें और क्या न करें
नागदेव की पूजा करें। शिवमंदिर में जल चढ़ाएं , व्रत रखें, सात्विक भोजन करें। नाग मंत्रों का जप करें
न करें यह काम
जमीन पर दूध न बहाएं। सर्प को मारें या परेशान न करें। झूठ बोलना या तामसिक भोजन लेना अपराध है । पूजा में काले कपड़े पहनना भी मना है।
उज्जैन में साल में सिर्फ एक दिन खुलता है नागचंद्रेश्वर मंदिर
मध्य प्रदेश के उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर परिसर में नागचंद्रेश्वर मंदिर स्थित है, जो साल भर में केवल नागपंचमी के दिन दर्शन हेतु खोला जाता है। यहां भगवान शिव नागराज शेषनाग के साथ विराजमान हैं। मान्यता है कि इस दिन यहां दर्शन करने मात्र से कालसर्प दोष शांत हो जाता है।
पेड़ों के नीचे सर्पबाम पर भी होती है पूजा
ग्रामीण अंचलों में विशेष रूप से नागबाम (पेड़ों की जड़ में प्राकृतिक सर्प आकृति वाले स्थान) पर लोग जाकर पूजा करते हैं। वहां दूध, दूर्वा, काले चने, अक्षत और गुड़ आदि चढ़ाया जाता है। इसे सर्पदेव की पूजा का एक प्राचीन रूप माना जाता है, जो पर्यावरण और जीव-रक्षा की लोकसंवेदना से भी जुड़ा है।