सुप्रीम कोर्ट की लताड़: कुत्तों से जान बचाना किसकी ज़िम्मेदारी?
दिल्ली में बच्ची और बुजुर्ग पर कुत्तों के हमले के बाद सुप्रीम कोर्ट सख्त, सभी राज्यों से मांगी रिपोर्ट

न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी और संजय करोल ने स्वत: संज्ञान लेकर कहा– यह सिर्फ पशु अधिकार नहीं, मानव जीवन का सवाल
उत्तराखंड में भी हालात चिंताजनक, नसबंदी अभियान और शेल्टर होम योजनाएं ज़मीन पर कमजोर
नई दिल्ली, 28 जुलाई : आवारा कुत्तों के बढ़ते आतंक से परेशान जनता की पीड़ा अब देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुंच चुकी है। हालत इतने गंभीर हो चुके हैं कि सुप्रीम कोर्ट को आज (28 जुलाई 2025) स्वतः संज्ञान लेना पड़ा। टाइम्स ऑफ इंडिया सहित कई प्रमुख समाचार पत्रों में यह खुलासा हुआ कि बच्चों पर आवारा कुत्तों के जानलेवा हमले और रेबीज़ से हो रही मौतों को लेकर सरकारें केवल कागज़ी योजनाओं तक सीमित हैं। हर साल करोड़ों का बजट जारी होता है, लेकिन काम शून्य, निगरानी व्यवस्था लचर और जवाबदेही नदारद है। अदालत ने इस पर कड़ा रुख अपनाते हुए कहा — “क्या लोगों की जान की कोई कीमत नहीं?”
रिठाला में 5 वर्षीय बच्ची पर हमला
दिल्ली के रिठाला इलाके में बीते सप्ताह एक 5 साल की बच्ची पर आवारा कुत्तों के झुंड ने हमला कर दिया। बच्ची गंभीर रूप से घायल हो गई और उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया। यह पूरी घटना सीसीटीवी कैमरे में कैद हुई और वायरल हो गई।
मंडावली में बुजुर्ग पर हमला
पूर्वी दिल्ली के मंडावली इलाके में 70 वर्षीय बुजुर्ग व्यक्ति पर कुत्तों के झुंड ने हमला कर दिया। वह सैर पर निकले थे, जब उन्हें काटा गया। इस हमले के बाद स्थानीय लोगों में भय का माहौल फैल गया।
इन्हीं दोनों घटनाओं को आधार बनाकर सुप्रीम कोर्ट ने यह स्वत: संज्ञान लिया। कोर्ट ने केंद्र सरकार के साथ-साथ सभी राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों से 4 सप्ताह में रिपोर्ट मांगी है।
न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी और संजय करोल की खंडपीठ ने कहा कि “यह केवल पशु अधिकार से जुड़ा मसला नहीं है, बल्कि नागरिकों के जीवन के अधिकार (Article 21) से जुड़ा सवाल है। जब लोग अपने ही मोहल्ले या गली में सुरक्षित नहीं हैं, तो यह प्रशासन की विफलता मानी जाएगी।”
पिछले कुछ महीनों में केरल, महाराष्ट्र, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश से भी कुत्तों के हमलों में मौत की खबरें आई हैं। एनिमल बर्थ कंट्रोल नियम 2023 के तहत कुत्तों की नसबंदी व टीकाकरण अनिवार्य किया गया है, लेकिन जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन कमजोर है। कोर्ट ने यह भी संकेत दिए कि वह इस मामले में अगली सुनवाई में विस्तृत निर्देश जारी कर सकता है।
राज्यों को 4 हफ्ते में जवाब देने का निर्देश
- सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों से पूछा है:
- उनके यहां कुत्तों की संख्या को नियंत्रित करने की क्या नीति है?
- नसबंदी, टीकाकरण, शेल्टर होम, और पुनर्वास के लिए क्या योजनाएं लागू हैं?
- क्या स्थानीय निकायों के पास बजट और संसाधन उपलब्ध हैं?
बजट भी पानी, नीतियां भी नाकाम
केंद्र सरकार द्वारा 2023-24 में पशु स्वास्थ्य व नियंत्रण योजना के तहत 430 करोड़ रुपये से अधिक का बजट आवंटित किया गया, लेकिन अधिकांश राज्य इसे पूरी तरह खर्च नहीं कर पाए।
दिल्ली MCD को अकेले हर साल करोड़ों रुपये मिलते हैं नसबंदी और रेस्क्यू अभियान के लिए, फिर भी ज़मीनी हालात जस के तस।
उत्तराखंड में भी स्थिति अलग नहीं
- 2023-24 में 12.4 करोड़ रुपये का बजट जारी हुआ, लेकिन महज़ 48% खर्च हुआ।
- देहरादून, हल्द्वानी, हरिद्वार, ऋषिकेश सहित कई शहरों में कुत्तों के झुंड खुलेआम गलियों में घूमते हैं, रेबीज़ टीकाकरण अभियान भी बेहद धीमा है।