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रक्षाबंधन : इस बार नहीं है भद्रा का साया, दुर्लभ योगों संग दोपहर तक राखी बांधेगी बहनें

बाजारों में खूब दिखी रौनक

देहरादून

भाई-बहन के प्रेम, विश्वास और रक्षा-संकल्प का प्रतीक रक्षाबंधन इस बार 9 अगस्त, शनिवार को मनाया जाएगा। यह पर्व न केवल भावनाओं का उत्सव है, बल्कि इसकी जड़ें वेदों, पुराणों और प्राचीन धार्मिक परंपराओं तक जाती हैं। इस वर्ष का रक्षाबंधन और भी खास है, क्योंकि भद्राकाल का कोई साया नहीं रहेगा, और बहनें सुबह से दोपहर तक पूरे शुभ समय में राखी बांध सकेंगी।

🕉️ शुभ मुहूर्त और भद्रा काल की स्थिति

राखी बांधने का शुभ समय: सुबह 5:47 बजे से दोपहर 1:24 बजे तक

पूर्णिमा तिथि: दोपहर 1:24 बजे तक

भद्राकाल समाप्त: 8 और 9 अगस्त की मध्यरात्रि में ही खत्म हो जाएगा

अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12:17 से 12:53 बजे

ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4:22 से 5:04 बजे

इस बार बहनों को रात तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा, जैसा कि पिछले तीन वर्षों में हुआ। रक्षाबंधन का पूरा दिन शुभ रहेगा।

ग्रहों की स्थिति अनुकूल, बन रहे हैं विशेष योग

सर्वार्थ सिद्धि योग

श्रवण और धनिष्ठा नक्षत्र

सौभाग्य और शोभन योग

इन शुभ योगों में राखी बांधना अत्यंत फलदायी माना जाता है, जिससे भाई-बहन के संबंधों में आयु, ऐश्वर्य और सौभाग्य की वृद्धि होती है।

रक्षा-सूत्र की परंपरा: वेदों से लेकर वर्तमान तक

रक्षाबंधन की परंपरा का आरंभ वेदों के यज्ञों से माना जाता है, जब ऋषि-मुनि यजमानों को रक्षासूत्र बांधते थे। यह केवल रक्षा का बंधन नहीं, बल्कि धार्मिक संकल्प और सुरक्षा की प्रतीक भावना थी।

कालांतर में यह परंपरा भाई-बहन के प्रेम का उत्सव बन गई, जहां बहनें भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और भाई उन्हें जीवन भर रक्षा का वचन देते हैं।

🔱 पौराणिक कथाएं: इस पर्व को बनाती हैं और भी गूढ़

जब माता लक्ष्मी ने रक्षासूत्र बांधा राजा बलि को

विष्णु पुराण के अनुसार, रक्षाबंधन से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा राजा बलि और माता लक्ष्मी की है। त्रेता युग में दानवीर राजा बलि ने अपने तप और दान से स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल तक विजय प्राप्त कर ली थी। देवताओं की रक्षा हेतु भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया, और बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी।

वामन ने पहले दो पगों में पृथ्वी और आकाश को नाप लिया, तीसरे पग के लिए बलि ने अपना सिर अर्पण कर दिया। इस त्याग से प्रसन्न होकर विष्णु ने बलि को पाताल लोक का राजा बनाया और वचन दिया कि वे सदैव उसकी रक्षा करेंगे।

जब माता लक्ष्मी ने देखा कि भगवान विष्णु पाताल लोक में रह गए हैं, तो उन्होंने ब्राह्मणी वेश धारण कर बलि के पास पहुंचकर रक्षासूत्र बांधा। बलि ने उन्हें बहन रूप में स्वीकार करते हुए उपहार दिए और जब लक्ष्मी ने अपनी इच्छा प्रकट की, तो बलि ने भगवान विष्णु को उनके साथ भेजने का वचन निभाया। तभी से माना जाता है कि राखी केवल बहन-भाई का बंधन नहीं, बल्कि धर्म, कर्तव्य और विश्वास का प्रतीक है।

इसके अलावा श्रीकृष्ण और द्रौपदी की कथा भी है, जब द्रौपदी ने कृष्ण की उंगली पर साड़ी का टुकड़ा बांधकर रक्षा सूत्र बांधा, जिसके बदले कृष्ण ने चीरहरण के समय उसकी रक्षा की।

इंद्राणी और इंद्र की कथा भी है जब देवासुर संग्राम में इंद्राणी ने इंद्र की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा, जिससे देवताओं को विजय मिली।

बाजारों में दिखी रौनक,  बहनों ने खरीदी एक से बढ़कर एक राखियां

त्योहार से पहले ही बाजारों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है। राखियों की दुकानों पर भीड़, मिठाई की दुकानों पर रौनक और सजावटी सामान की बिक्री में तेजी देखी जा रही है। बहनों ने अपने भाइयों के लिए कलात्मक राखियां, लुम्बा, कंगन, पूजा सामग्री और उपहार पहले से खरीदकर तैयार कर लिए हैं। हर घर में पूजा थाल सजाई जा रही है, मिठाइयां बन रही हैं और रिश्तों को संवारने की तैयारी जोरों पर है।

आज के दौर में राखी का व्यापक सामाजिक महत्व

अब राखी केवल रक्त संबंधों तक सीमित नहीं रही। बहनें अपने मित्रों, सैनिकों, शिक्षकों, और यहां तक कि वृक्षों तक को राखी बांधकर रक्षा और सेवा का संकल्प व्यक्त करती हैं। यह पर्व सांप्रदायिक सौहार्द, सामाजिक एकता और मानवीय रिश्तों की गहराई को उजागर करता है। इस दिन बहनों द्वारा बांधी गई राखी केवल एक धागा नहीं, बल्कि संस्कारों, भावनाओं और आशीर्वादों की माला होती है, जो भाई के जीवन को सुरक्षित और सफल बनाती है।

रक्षाबंधन 2025 न केवल भद्रा दोष से मुक्त, बल्कि धार्मिक, पौराणिक और सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत शुभ और विशेष है।

 

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