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मेडिकल इतिहास में दुर्लभ केस! महिला के लिवर में मिला 12 हफ्ते का भ्रूण

बुलंदशहर की महिला के केस ने चौंकाया चिकित्सा जगत को

गर्भाशय नहीं, लिवर में पल रहा था भ्रूण!

डॉक्टर भी रह गए हैरान, एमआरआई से हुआ खुलासा 

मेरठ, 25 जुलाई: उत्तर प्रदेश के मेरठ में एक 30 वर्षीय महिला के इलाज के दौरान चिकित्सा जगत को चौंकाने वाला मामला सामने आया है। बुलंदशहर निवासी इस महिला को पिछले दो महीने से पेट में रह-रह कर दर्द और उल्टी की शिकायत थी। जब मेरठ के एक निजी इमेजिंग सेंटर में एमआरआई जांच की गई, तो यह खुलासा हुआ कि भ्रूण गर्भाशय में नहीं, बल्कि लिवर के अंदर विकसित हो रहा था। यह स्थिति इंट्राहेपेटिक एक्टोपिक प्रेग्नेंसी कहलाती है, जो दुनिया के सबसे दुर्लभ गर्भधारण मामलों में गिनी जाती है।

शुरुआती लक्षण बने गंभीर केस का इशारा

महिला को कई हफ्तों से पेट दर्द और उल्टी की शिकायत थी। शुरुआती इलाज से कोई खास सुधार नहीं हुआ, तब मेरठ के एक निजी रेडियोलॉजिकल सेंटर में जांच कराई गई। सेंटर में कार्यरत रेडियोलॉजिस्ट डॉ. के.के. गुप्ता ने बताया कि जब पूरी पेट की एमआरआई रिपोर्ट देखी गई तो यह पाया गया कि भ्रूण लिवर के दाहिनी ओर स्थित हिस्से में विकसित हो रहा है, और उसमें हृदय की धड़कनें भी सक्रिय हैं।

क्या है इंट्राहेपेटिक एक्टोपिक प्रेग्नेंसी?

  • आमतौर पर गर्भधारण के बाद भ्रूण गर्भाशय में विकसित होता है।
  • लेकिन एक्टोपिक प्रेग्नेंसी तब होती है जब भ्रूण गर्भाशय के बाहर विकसित हो—जैसे फेलोपियन ट्यूब, ओवरी या पेरिटोनियम में।
  • लेकिन लिवर में भ्रूण बनना सबसे दुर्लभ अवस्थाओं में से एक है, जिसे इंट्राहेपेटिक एक्टोपिक प्रेग्नेंसी कहा जाता है।
  • चिकित्सा शोधों के अनुसार, दुनिया भर में अब तक ऐसे केवल 20–25 केस ही दर्ज हुए हैं।

जानलेवा साबित हो सकती है यह स्थिति

स्त्री रोग विशेषज्ञों के अनुसार, लिवर में भ्रूण का विकास अत्यंत जटिल और खतरनाक स्थिति है। इस स्थिति में भ्रूण को तुरंत हटाना आवश्यक होता है। कई बार ऑपरेशन के दौरान लिवर का हिस्सा भी निकालना पड़ता है। देरी होने पर अंदरूनी रक्तस्राव और महिला की मृत्यु तक हो सकती है।

क्या होनी चाहिए सावधानियां?

  • गर्भावस्था के शुरुआती महीनों में लगातार पेट दर्द, अत्यधिक उल्टी या असामान्य लक्षण दिखें तो तुरंत स्त्री रोग विशेषज्ञ से संपर्क करें।
  • सोनोग्राफी और HCG टेस्ट के जरिए एक्टोपिक प्रेग्नेंसी का जल्द पता लगाया जा सकता है।
  • समय पर जांच और इलाज से जान को बचाया जा सकता है।

भारत में संभवतः पहला मामला

डॉक्टरों के अनुसार, यह मामला भारत का पहला दर्ज इंट्राहेपेटिक एक्टोपिक प्रेग्नेंसी केस हो सकता है। यदि इसका दस्तावेजीकरण होता है, तो यह मेडिकल लिटरेचर में एक ऐतिहासिक उदाहरण के रूप में शामिल किया जाएगा। इससे मेडिकल छात्रों और शोधकर्ताओं को भी नई जानकारी मिलेगी।

यह केस न केवल मेडिकल साइंस के लिए शोध का विषय है, बल्कि आम लोगों के लिए एक चेतावनी भी है कि गर्भावस्था के दौरान शरीर के हर संकेत को गंभीरता से लें। समय रहते सतर्कता ही जीवन रक्षा का उपाय बन सकती है।

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