
नई दिल्ली: केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने बच्चों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए देशभर के सभी संबद्ध स्कूलों में ‘ऑयल बोर्ड’ लगाना अनिवार्य कर दिया है। इस से पहले शुगर बोर्ड का निर्देश भी जारी किया गया है। अब देखना यह है कि सीबीआई के बच्चों की सेहत को लेकर किए जा रहे प्रयास कितने फलीभूत होते हैं।
15 जुलाई 2025 से जारी इस नए आदेश के तहत अब स्कूल कैंटीन और मेस में यह साफ-साफ प्रदर्शित करना होगा कि वहां किस प्रकार का खाद्य तेल उपयोग हो रहा है, उसकी कितनी मात्रा प्रतिदिन खपत हो रही है और आखिरी बार तेल कब बदला गया।
CBSE ने यह निर्देश बच्चों में बढ़ते मोटापे, डायबिटीज और अन्य बीमारियों को ध्यान में रखते हुए जारी किया है। स्कूल कैंटीन में किन चीजों का उपयोग हो रहा है, यह अब बच्चों, अभिभावकों और शिक्षकों के सामने पारदर्शी तरीके से प्रदर्शित किया जाएगा। CBSE का लगातार यह प्रयास है कि स्कूल कैंपस में स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा दिया जाए। शुगर बोर्ड से मीठे के प्रति जागरूकता, ऑयल बोर्ड से तैलीय भोजन की पारदर्शिता लाने के साथ ही जंक फूड और अनहेल्दी ड्रिंक्स पर रोक लगाना ही उद्देश्य है।
यह है ऑयल बोर्ड में
स्कूलों को इन बातों का उल्लेख सार्वजनिक रूप से करना होगा—
किस ब्रांड और प्रकार का तेल उपयोग हो रहा है (सरसों, मूंगफली, रिफाइंड आदि)
प्रतिदिन कितनी मात्रा में तेल की खपत हो रही है
आखिरी बार तेल कब बदला गया
बोर्ड को ऐसे स्थान पर लगाना अनिवार्य किया गया है, जहां छात्र, अभिभावक और स्कूल स्टाफ इसे आसानी से देख सकें।
🛑 CBSE की पुरानी पहल: शुगर बोर्ड का आदेश पहले ही जारी
CBSE ने इससे पहले 14 मई 2025 को ‘शुगर बोर्ड’ लगाने का आदेश जारी किया था।
उसके तहत स्कूलों को कैंटीन और मेस में यह बोर्ड लगाना था, जिसमें यह जानकारी हो—
रोजाना कितनी चीनी का उपयोग हो रहा है
बच्चों के लिए किस प्रकार के मीठे पेय और खाद्य पदार्थ सीमित किए गए हैं
अत्यधिक चीनी से स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान के प्रति जागरूकता बढ़ाना
शुगर बोर्ड पर तमाम स्कूलों ने निभाई केवल औपचारिकता
दिल्ली-एनसीआर, कोलकाता, बेंगलुरु जैसे बड़े शहरों के प्रतिष्ठित स्कूलों (जैसे डीपीएस, बाल भारती, एपीजे, डीएवी) ने इस आदेश का पालन करते हुए बोर्ड लगाए।
इन्हीं स्कूलों में हेल्दी फूड, हेल्दी ब्रेकफास्ट कैंपेन और हेल्थ अवेयरनेस प्रोग्राम भी शुरू किए गए लेकिन छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों के स्कूलों में इसका पालन बेहद कमजोर रहा।
कई जगह सिर्फ बोर्ड लगाए गए, लेकिन कैंटीन में वही पुराना जंक फूड और मीठे उत्पाद बिकते रहे। स्कूलों ने इसे केवल औपचारिकता में पूरा कर दिया। CBSE की यह पहल स्कूलों में स्वस्थ माहौल, बच्चों में बेहतर जीवनशैली और खानपान में पारदर्शिता लाने की दिशा में बड़ा कदम है। लेकिन इसका असली असर तभी दिखेगा, जब स्कूल सिर्फ बोर्ड लगाकर नहीं, बल्कि अपनी कैंटीन और बच्चों की आदतों में बदलाव के लिए जिम्मेदारी से कार्य करेंगे।
CBSE का उद्देश्य साफ
CBSE का लगातार यह प्रयास है कि स्कूल कैंपस में स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा दिया जाए। शुगर बोर्ड से मीठे के प्रति जागरूकता, ऑयल बोर्ड से तैलीय भोजन की पारदर्शिता लाने के साथ ही जंक फूड और अनहेल्दी ड्रिंक्स पर रोक लगाना ही उद्देश्य है।
सिर्फ बोर्ड लगाने से नहीं बदलती बच्चों की आदतें
विशेषज्ञों की राय है कि स्कूल प्रशासन को सख्ती से कैंटीन मॉनिटरिंग करनी होगी, हेल्दी फूड पर ज़ोर देना होगा और बच्चों में हेल्दी लाइफस्टाइल की आदत डालनी होगी। “बोर्ड सिर्फ दिखावा नहीं होना चाहिए। व्यवहार में बदलाव के लिए स्कूल को जिम्मेदारी से काम करना होगा।”