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रूस का साथ छोड़ो नहीं तो भुगतने होंगे परिणाम

“भारत, चीन और ब्राजील को अब चुनना होगा अमेरिका या पुतिन”

“अब समय आ गया है कि देश तय करें कि वो अमेरिका के साथ हैं या रूस के साथ” — अमेरिकी सीनेटर का कड़ा संदेश

अमेरिका के एक वरिष्ठ सीनेटर ने वैश्विक राजनीति की दिशा तय करने वाले बेहद महत्वपूर्ण बयान में कहा है कि भारत, चीन और ब्राजील जैसे देशों को अब यह तय करना होगा कि वे अमेरिका के साथ खड़े रहेंगे या रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का समर्थन करेंगे। उन्होंने यह टिप्पणी यूक्रेन युद्ध और रूस पर जारी पश्चिमी प्रतिबंधों के मद्देनज़र की।

सीनेटर ने दो टूक कहा,

> “चीन, भारत और ब्राजील के सामने अब विकल्प आने वाले हैं कि या तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था को चुनें या पुतिन की मदद करें। और मुझे लगता है कि वो अमेरिकी अर्थव्यवस्था को चुनेंगे।

भू-राजनीतिक पृष्ठभूमि: क्यों आया यह बयान?

यह बयान ऐसे समय में आया है जब रूस-यूक्रेन युद्ध तीसरे साल में प्रवेश कर चुका है और अमेरिका रूस पर वैश्विक दबाव बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। अमेरिका चाहता है कि दुनिया के उभरते आर्थिक महाशक्तियाँ—भारत, चीन और ब्राजील—रूस के साथ व्यापारिक संबंध सीमित करें और अमेरिकी नेतृत्व वाले लोकतांत्रिक गठबंधन के साथ मजबूती से खड़े हों।

विशेषज्ञों के अनुसार, इस बयान के पीछे अमेरिका की चिंता यह भी है कि ये तीनों देश ब्रिक्स (BRICS) समूह के सदस्य हैं, जो हाल के वर्षों में अमेरिकी डॉलर वर्चस्व को चुनौती देने की दिशा में बढ़ते दिख रहे हैं।

भारत की स्थिति: संतुलन की कूटनीति

भारत ने अब तक रूस और अमेरिका दोनों के साथ रणनीतिक संतुलन बनाकर रखा है। यूक्रेन युद्ध में भारत ने स्पष्ट रूप से किसी पक्ष का समर्थन नहीं किया, लेकिन रूस से सस्ते तेल की खरीद जारी रखी। साथ ही, अमेरिका के साथ सैन्य और तकनीकी साझेदारियों को भी मजबूत किया।

भारत के विदेश मंत्रालय की ओर से इस बयान पर अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन कूटनीतिक सूत्रों के अनुसार, भारत अपने “स्वतंत्र विदेश नीति दृष्टिकोण” से पीछे हटने को तैयार नहीं है।

चीन और ब्राजील की भूमिका

चीन पहले ही अमेरिका के साथ तीव्र व्यापार युद्ध में उलझा है और रूस के साथ अपने रिश्तों को गहराता दिख रहा है।

ब्राजील, जहां हाल ही में सरकार परिवर्तन हुआ है, तटस्थ रुख अपनाने की कोशिश कर रहा है लेकिन वह भी ब्रिक्स में रूस और चीन के साथ खड़ा नजर आता है।

विश्लेषकों की राय

अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार प्रो. आदित्य राज के अनुसार,

> “यह बयान अमेरिका के दबाव को दर्शाता है, लेकिन भारत जैसे देश अमेरिकी ध्रुवीकरण के बजाय बहुपक्षीय संतुलन को तरजीह देते हैं। भारत की नीति ‘राष्ट्रहित सर्वोपरि’ के सिद्धांत पर आधारित है।”

 

सीनेटर के इस बयान ने एक बार फिर दुनिया को दो ध्रुवों में बांटने की अमेरिकी कोशिश को सामने रखा है। भारत, चीन और ब्राजील जैसे देशों के लिए यह कूटनीतिक चुनौती है कि वे अपनी अर्थव्यवस्था, रणनीतिक हित और वैश्विक भूमिका को किस तरह संतुलित करते है।

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